गांधी जी की कल्पना, हो सकती साकार,
राम राज्य इस देश में, ले सकता आकार |
ले सकता आकार, करे सब मिल तैयारी
मन में हो संकल्प,नहीं फिर मुश्किल भारी
लक्ष्मण कर विश्वास,चले अब ऐसी आंधी
भ्रष्ट तंत्र हो नष्ट, तभी खुश होंगे गांधी ||
(4)
ऊँचा कद इंसान का, नहीं ह्रदय में भाव
कागज़ खुशबू दे नहीं, दिखे नहीं सद्भाव |
दिखे नहीं सद्भाव, स्नेह हिवडे से मिलता
नेह न बरसे भाव, प्यार फिर कैसे टिकता
लक्षमण करे न काम,तभी मस्तक हो नीचा
माँ को आवे लाज, झुका सिर करे न ऊँचा |
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आबार श्री श्याम नरेन वर्मा जी
"मुझे लगता है 'लक्ष्मण करे विश्वास' में टंकण त्रुटि है i" जी सही पकड़ की है आपने | कर शब्द की जगह सहवन से करे टंकित हो
गया है | आपका हार्दिक आभार श्री (डॉ) गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
सुंदर कुण्डलि के बधाई, श्रीवास्तवजी के सलाह को संज्ञान में लाना चाहिये । सादर
सुन्दर कुंडलिया छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई.... |
3244 32332
आदरणीय लड़ीवाला जी
मुझे लगता है 'लक्ष्मण करे विश्वास' में टंकण त्रुटि है i यह 'लक्ष्मण कर विश्वास ' होना चाहिए i मान्यवर रोला के सम चरण का विन्यास दो प्रकार होता है i 3 +2 +4 +4 या 3 +2 +3 +3 +2 , आपने लिखा - चले विकास की आंधी i यहाँ विन्यास उचित नहीं लग रहा i आपका विन्यास 3 +3 या 4 है i अगर इसे ' चले अब ऐसी आंधी ' कर दे तो 3 +2 +4 +4 विन्यास पूरा हो जायेगा i पर मोदी का विकास यहाँ से हटाना होगा i आशा है आप इस कथन को अन्यथा नहीं लेंगे i 'समूह' में कुण्डलिया पर सौरभ जी का आलेख अवश्य पढ़े i सादर i
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