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कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

गांधी जी की कल्पना, हो सकती साकार, 

राम राज्य इस देश में, ले सकता आकार |

ले सकता आकार, करे सब मिल तैयारी

मन में हो संकल्प,नहीं फिर मुश्किल भारी

लक्ष्मण कर विश्वास,चले अब ऐसी आंधी

भ्रष्ट तंत्र हो नष्ट, तभी खुश होंगे गांधी ||

(4)

ऊँचा कद इंसान का, नहीं ह्रदय में भाव 
कागज़ खुशबू दे नहीं, दिखे नहीं सद्भाव | 
दिखे नहीं सद्भाव, स्नेह हिवडे से मिलता
नेह न बरसे भाव, प्यार फिर कैसे टिकता
लक्षमण करे न काम,तभी मस्तक हो नीचा 
माँ को आवे लाज, झुका सिर करे न ऊँचा |

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 24, 2014 at 9:47am

छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आबार श्री श्याम नरेन वर्मा जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 24, 2014 at 9:46am

"मुझे लगता है  'लक्ष्मण करे विश्वास' में  टंकण त्रुटि है i" जी सही पकड़ की है आपने | कर शब्द की जगह सहवन से करे टंकित हो 

गया है | आपका हार्दिक आभार श्री (डॉ) गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

Comment by रमेश कुमार चौहान on May 23, 2014 at 10:08pm

सुंदर कुण्डलि के बधाई, श्रीवास्तवजी के सलाह को संज्ञान में लाना चाहिये । सादर

Comment by Shyam Narain Verma on May 23, 2014 at 5:58pm
सुन्दर कुंडलिया छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई....
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 23, 2014 at 12:02pm

3244   32332

आदरणीय लड़ीवाला जी

मुझे लगता है  'लक्ष्मण करे विश्वास' में  टंकण त्रुटि है i यह 'लक्ष्मण कर विश्वास ' होना चाहिए  i  मान्यवर रोला के सम चरण का विन्यास दो प्रकार होता है i  3 +2 +4 +4  या 3 +2 +3 +3 +2 , आपने लिखा - चले विकास  की आंधी i  यहाँ विन्यास उचित नहीं लग रहा i आपका विन्यास 3 +3 या 4  है i  अगर इसे ' चले अब ऐसी आंधी ' कर दे तो 3 +2 +4 +4  विन्यास पूरा हो जायेगा  i पर मोदी का विकास यहाँ से हटाना होगा i आशा है आप इस कथन को अन्यथा नहीं लेंगे i 'समूह' में कुण्डलिया पर सौरभ जी का आलेख अवश्य पढ़े i सादर  i

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