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खार हूँ एक ये सोचा है सभी ने मुझको
फूल के साथ जो देखा है सभी ने मुझको
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बंद सदियों से पड़ा था मैं किसी कोने में
खत तेरा जान के खोला है सभी ने मुझको
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भोर सा रास तुझे आज मगर आया क्यूँ
तम भरी रात जो बोला है सभी ने मुझको
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दाद वैसे तो मिली बात बुरी भी कह दी
बस तेरी बात पे कोसा है सभी ने मुझको
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रूह की बात किसे यार लगी सौदों की
सिर्फ तन से ही तो तोला है सभी ने मुझको
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बंद आहट से मेरी रोज हुआ जो यारब
फिर उसी द्वार पे भेजा है सभी ने मुझको
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हाल मेरा जो हुआ है ये फकीरों जैसा
हर गली गाँव में रोका है सभी ने मुझको
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बेमजा यार सफर रोज नई राहों का
हर नये मोड़ पे टोका है सभी ने मुझको
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(रचना - 10 मार्च 2009)
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आदरणीय भाई गिरिराज जी उत्साहवधन के लिए हार्दिक धन्यवाद । आप और शकील भाई की सलाह उचित है ।
आदरणीय भाई शकील जमशेदपुरी जी , गजज की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार । साथ ही मार्गदर्शन के लिए भी । अर्कान के संदर्भ में मैं भी आश्वस्त नहीं संशय में था आपने मार्गदर्शन कर दुविधा दूर कर दी इसके लिए दिली धन्यवाद स्वीकारें आशा है भविष्य में भी अपनी अनमोल टिप्पणियों से मार्गदर्शन करते रहेंगे । कुछ निजी और तकनीकी विवशताओं के चलते प्रत्युतर देने में विलम्ब हो गया अन्यथा न लें । इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं । आशा है भविष्य में भी आपकी अनमोल सलाह और मार्गदर्शन मिलता रहेगा यही हार्दिक अभिलाषा है । पुनः हार्दिक धन्यवाद ।
सुंदर गजल बधाई आपको ।
अच्छी ग़ज़ल है! इस प्रयास पर आपको बधाई!
सुधीजनों ने बहुत कुछ कह दिया है. उन बातों का संज्ञान लें. टिप्पणियों का उत्तर अवश्य दिया करें. इससे बेहतर संवाद बनता है.
इस मिसरे को देखें- //हर गली गाँव में पे रोका है सभी ने मुझको//.....'में' के बाद 'पे' ?
बंद सदियों से पड़ा था मैं किसी कोने में
खत तेरा जान के खोला है सभी ने मुझको...bahut umda khayal wah!
आदरणीय भाई गोपाल नारायण जी, भाई मिकेश जी और भाई श्यामनारायण जी ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद .
खार हूँ एक ये सोचा है सभी ने मुझको
फूल के साथ जो देखा है सभी ने मुझको..वाह शानदार आगाज
रूह की बात किसे यार लगी सौदों की
सिर्फ तन से ही तो तोला है सभी ने मुझको..बहुत बढ़िया
हाल मेरा जो हुआ है ये फकीरों जैसा
हर गली गाँव में पे रोका है सभी ने मुझको..उम्दा
बहुत ही शानदार ग़ज़ल हर अशार दमदार ...शकील जी की परामर्श मुझे भी सही सा प्रतीत हो रहा है ..ढेरों बढ़ायी क़ुबूल करें सादर
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हाल मेरा जो हुआ है ये फकीरों जैसा
हर गली गाँव में पे रोका है सभी ने मुझको..............वाह! बहुत खूब, दिली बधाई आपको आदरणीय लक्ष्मण जी
आदरणीय लक्ष्मणजी उम्दा ग़ज़ल है, जहाँ तक बह्र की बात है मेरे विचार भी जनाब शकील भाई जैसे ही हैं
बंद सदियों से पड़ा था मैं किसी कोने में
खत तेरा जान के खोला है सभी ने मुझको.....क्या बात है.
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