आये अजल जिस गोद में ……
कितने निर्दयी हो तुम
दबे पाँव आते हो
मेरे खामोश लम्हों को
अपनी यादों से झंकृत कर जाते हो
झील की लहरों पे चाँद
लहर लहर मुस्कुराता है
मेरी बेबसी को गुनगुनाता है
सबा मेरे गेसुओं से लिपट
मेरी ख़्वाहिशों को बार बार ज़िंदा कर जाती है
तुम्हारे मुहब्बत में डूबे लम्स
मेरे लबों पे कसमसाते हैं
मगर तड़प के इन अहसासों को तुम न समझोगे
तुम क्यों नहीं समझते
मेरे तमाम मौसम तुम से शुरू होते हैं
और तुम पे ही फ़ना होते हैं
मेरी तन्हाई की हर करवट में
तुम मेरे साथ सोते हो
हर सलवट में तुम्हारी महक होती है
सिहिर जाती हूँ जब भी बादे सबा मुझे छूती है
क्या मेरी दर्द भरी सदा सुनकर भी न आओगे
मेरी प्यास तुम्हारे इंतज़ार में
मेरे इंतज़ार को अपनी यादों की मैखों का दर्द न दो
आओ और मेरे लम्हों को अपने वज़ूद का तआरुफ़ दे दो
मेरे अक्स को अपना अक्स दे दो
आये अजल जिस गोद में
वो मुहब्बत भरा इक फ़र्द दे दो
लम्स=स्पर्श , सदा=आवाज़ ,मैखों=कीलें ,बादे सबा =सुबह की हवा ,फ़र्द =शख़्श,अजल =मौत
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Saurabh Pandey जी रचना पर आपकी प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार
कविता की मुलामीयत प्रभावित करती है, आदरणीय ..
सादर बधाइयाँ
आदरणीय बृजेश नीरज जी रचना पर आपकी प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार
बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपाई जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार
अच्छी रचना , बधाई ।
आदरणीय सुशील सरन भाई , बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति हुई है , आपको बहुत बधाई ॥
भाई गुमनाम जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
khoob sir bahut khoob,,,
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