For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो हाथ की दुनियां

लकीरें  गहरी हो गयी है ,

बुधुआ मांझी के माथे की .

स्याह तल पर उभर आये कई खारे झील .

सिमट गया  है आकाश का सारा विस्तार

उसके आस पास. 

दुनियां हो गयी है दो हाथ की.

 

मिट्टी का घर, छोटे बच्चे, बैल, बकरियां और

खेत का छोटा सा टुकड़ा

इससे आगे है एक मोटी दीवार

बिना खेत और घर के कैसे जियेगा?

इससे जुदा क्या दुनियां हो सकती है ?

  

उनकी जमीन के नीचे ही क्यों निकलता है कोयला ?

पर  वह  किस पर करे क्रोध

अपने भाग्य पर , पूर्वजों पर , सिंग बोंगा पर ?

उसके आगे है घुप्प अँधेरा

वह धंसता जा रहा है जमीन के अन्दर

उसकी देह परिवर्तित हो रही काले पत्थर में

 

इस  कोयले में शामिल है उसके पूर्वजों की अस्थियाँ.

उनके पूर्वज भी उन्हीं की तरह काले थे.

क्या यूँ ही उजाड़े जाते लोग

अगर कोयला सफ़ेद होता?

उसकी आँखे दहक उठी है अंगारे की तरह

आग लग गयी है कोयले की खदान में..

 

..नीरज कुमार नीर ..

मौलिक एवं अप्रकाशित ..

 सिंग बोंगा : आदिवासियों के देवता 

Views: 523

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on June 5, 2014 at 8:00pm

आदरणीया  कुंती मुख़र्जी जी आपका दिल से आभार व्यक्त करता हूँ स्नेह एवं सहयोग बनाये रखें ..

Comment by Neeraj Neer on June 5, 2014 at 7:58pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी इस प्रोत्साहन एवं समर्थन के लिए हार्दिक आभार आपका .. 

Comment by Neeraj Neer on June 5, 2014 at 7:57pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आपका हार्दिक आभार .

Comment by coontee mukerji on June 5, 2014 at 5:48pm

नीरज कुमार जी, आपकी रचनाएँ हमेशा एक चित्र खींचती है. हम जब भी पढ़ते एक खुला दृश्य हमारे सामने आ जाता है.यह आपकी लेखनी की खूबी है......एक एक बंध विचारनीय है....कहीं देर न हो जाए और भोले आदिवासी कहानियाँ में दुबक के न रह जाय. आशा है आपकी ये रचना फलीत हो. अनेक साधुवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2014 at 5:43pm

वाह बहुत मार्मिक ....बहुत सुन्दर सटीक शब्दों में बयाँ की आदिवासियों की व्यथा .सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई नीरज जी. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2014 at 12:16pm

नीर जी

आदिवासी व्यथा का अच्छा चित्रण आपने किया है i  आपको धन्यवाद i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service