हे भगवन वर दीजिए, रहे सुखी संसार |
घर परिवार समाज पे, बरसे कृपा अपार ||
दीन दुखी कोई न हो, ना सूखे की मार |
अम्बर बरसे प्रेम से, भरे अन्न भण्डार ||
कृपा करो हे शारदे, बढ़े कलम की धार |
अक्षर चमके दूर से, शब्द मिले भरमार ||
बेटी सदन की लक्ष्मी, मिले उसे सम्मान |
रोती जिस घर में बहू, होती विपत निधान ||
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
(दोहों पर एक छोटा सा प्रयास है )
Comment
आदरणीय विजय प्रकाश जी ..आदरणीय रवि प्रभाकर जी ..आदरणीया महेश्वरी जी ..प्रिय अन्नपूर्णा जी आप सभी का बहुत बहुत आभार | सादर
आदरणीय सुशील जी मर्गदर्शन हेतु हृदयतल से आभार.. क्षमा मांग कर शर्मिंदा न करे आप सब से ही सीख रही हूँ | सादर
आदरणीय विजय शंकर जी आभार स्वीकारें | सादर
आदरणीया मीना जी ..मानव मात्र के कल्याण की कामना करते इन तमाम शसक्त दोहों के लिए तहे दिल बधाई सादर
आ0 मीना बहन सुख समृ़द्व की कामना करते इन इनमोल दोहों के लिए कोटि कोटि नमन ।
बहुत ही सुंदर दोहावली, बधाई आदरणीया मीना दीदी
मीना जी, आपके लिखे दोहे बहुत सुंदर है. पढ़कर अच्छा लगा.....जैसे विद्व जनों ने कहा है. जाँज कर लिजियेगा. सादर
मीना जी
मेरे दो सुझाव है i कृपया इन्हें अन्यथा न लीजियेगा i पहले दोहे के दोनों सम छंदों में सुखी और सुक्ख का प्रयोग कुछ खटकता है i फिर सुक्ख तो गढ़ंत शब्द है i यहाँ पर 'कृपा' शब्द चल सकता है i दूसरी बात 'बेटी घर की लक्ष्मी' में एक मात्रा कम है i आपका दोहा-कृपा करो हे शारदे --- ' अति उत्तम है i सादर महनीया i
बहुत उम्दा दोहे है, आदरणीय मीना पाठक जी ढेरों शुभकामनायें ...
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