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इस छोटी सी कथा ने बहुत कुछ कह दिया......सादर.
आ० रवि प्रभाकर जी , इस लघु कथा के विषय में जितना कहें उतना कम है l अत्यधिक संस्कारहीन हो चुके मानव में हवस के लिए रिश्तों की मानमर्यादा और पवित्रता का शून्य होता भाव आपने जिसप्रकार न्यूनतम शब्दों में आपने उकेरा है, उसकी प्रशंसा के लिए शब्दों की कमी पड़ गयी है l इस सारगर्भित प्रस्तुति पर कोटि कोटि बधाई l
इस लघुकथा का दंश बहुत तीखा और गहरा है जो किसी भी संवेदनशील पाठक को सन्न और सुन्न करने में सक्षम है. मेरी दृष्टि में यह एक सफल लघुकथा है जोकि इस विधा के मानकों को पूर्णतय: संतुष्ट करती प्रतीत होती है. इस सारगर्भित प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित है.
थोड़े मे बहुत कुछ कह दिया आपने , अच्छी लघु कथा हेतु बधाई ।
एक विधवा ने अपनी मुन्नी के सम्मान को बचाना सीख लिया..
सुन्दर कथा...
सादर.
बहुत बढ़िया लघुकथा, सच! आज के समय में किससे बचा जाय. बहुत बहुत बधाई आदरणीय रवि जी
रिश्तों का घ्रणित चेहरा ......
वर्तमान हालात पर कटाक्ष करती मर्मस्पर्शी रचना !
ओह !!
क्या कहूँ ..बहुत कुछ कह दिया आप ने अपनी लघुकथा के माध्यम से .. किस तरह से हर रिश्ते से भरोसा उठ गया है आज .....बहुत सटीक और सार्थक लघुकथा ...बधाई
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