For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दंश (लघुकथा) रवि प्रभाकर

“बहन ! आज मुझे काम से लौटने में देर हो जाएगी, तब तक तुम मुन्नी को अपने पास ही रखना।" उस विधवा ने हाथ जोड़ते हुए अपनी पड़ोसन से आग्रह किया।
“पर अब तो तेरा देवर भी गाँव से आया हुआ है, तो फिर.....।”
”इसीलिए तो तुम्हारे पास छोड़ रही हूँ."

Views: 894

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on June 26, 2014 at 10:22pm

इस छोटी सी कथा ने बहुत कुछ कह दिया......सादर.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 11:20am

आ० रवि प्रभाकर जी , इस लघु कथा के विषय में जितना कहें उतना कम है l अत्यधिक संस्कारहीन हो चुके मानव में हवस के लिए रिश्तों की मानमर्यादा और पवित्रता का शून्य होता भाव आपने जिसप्रकार न्यूनतम शब्दों में आपने उकेरा है, उसकी प्रशंसा के लिए शब्दों की कमी पड़ गयी है l  इस सारगर्भित प्रस्तुति पर कोटि  कोटि  बधाई l   


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 26, 2014 at 11:04am

इस लघुकथा का दंश बहुत तीखा और गहरा  है जो किसी भी संवेदनशील पाठक को सन्न और सुन्न करने में सक्षम है. मेरी दृष्टि में यह एक सफल लघुकथा है जोकि इस विधा के मानकों को पूर्णतय: संतुष्ट करती प्रतीत होती है. इस सारगर्भित प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित है.

Comment by annapurna bajpai on June 25, 2014 at 5:42pm

थोड़े मे बहुत कुछ कह दिया आपने ,  अच्छी लघु कथा हेतु बधाई । 

Comment by Shubhranshu Pandey on June 25, 2014 at 1:54pm

एक विधवा ने अपनी मुन्नी के सम्मान को बचाना सीख लिया..

सुन्दर कथा...

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 25, 2014 at 12:26pm

बहुत बढ़िया लघुकथा, सच! आज के समय में किससे बचा जाय. बहुत बहुत बधाई आदरणीय रवि जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2014 at 5:15pm

रिश्तों का घ्रणित चेहरा ......

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2014 at 4:55pm

वर्तमान हालात पर कटाक्ष करती मर्मस्पर्शी रचना !

Comment by Meena Pathak on June 24, 2014 at 3:04pm

ओह !!

क्या कहूँ ..बहुत कुछ कह दिया आप ने अपनी लघुकथा के माध्यम से .. किस तरह से हर रिश्ते से भरोसा उठ गया है आज .....बहुत सटीक और सार्थक लघुकथा ...बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service