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भला हो या बुरा हो बस, शिकायत  फितरतों में है
वो ऐसा शक्स है  जिसकी बगावत  फितरतों में है
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रहेगा साथ  जब तक वो  चलेगा  चाल उलटी ही
भले  ही  दोस्तों  में  वो, अदावत  फितरतों में है
**
उसे लेना  नहीं  कुछ  भी  बड़े   छोटे  के होने से
खड़ा हो  सामने जो भी, नसीहत  फितरतों में है
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हुनर  सबको  नहीं  आता  हमेशा  याद  रखने का
भुलाए वो किसी को  क्या, मुहब्बत फितरतों में है
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कड़ा रूख हुश्न अपनाए बताओ किस तरह बोलो
सुना  है  हमने  तो यारो नजाकत फितरतों में है
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शरारत गर न करते  तो  कहाँ  वो बच्चे कहलाते  
बुढ़ापा  ये  नहीं   अच्छा  शरारत  फितरतों में है
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चुभे जो सच वो कहने से जुबा चुप हो यही अच्छा
भले  अच्छा  तुम्हारी भी  सदाकत फितरतों में है     = सत्यता
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कभी  वो  बाढ़  देता   है  कभी  देता  अकालें  वो
न जाने क्यों खुदा के  भी कयामत फितरतों में है
**
हरारत  वक्त  पर  आये  जरूरी  है, कहावत सच     =  क्रोध
‘मुसाफिर’ पर नहीं  अच्छा हरारत फितरतों में है
**
( रचना - 12 जनवरी 2014 )

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रचना मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर ’

Views: 624

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2014 at 11:42am

आ0 प्राची बहन , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2014 at 11:41am

आ0 भाई सौरभ जी , हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 8, 2014 at 3:10pm

रहेगा साथ  जब तक वो  चलेगा  चाल उलटी ही
भले  ही  दोस्तों  में  वो, अदावत  फितरतों में है......बहुत सुन्दर 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 3:50am

अच्छा प्रयास !

दाद कुबूल करें.. .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2014 at 11:21am

आ० भाई विजय प्रकाश जी , आपको ग़ज़ल अच्छी लगी यह मेरे लिए शुभ संकेत है  l आपका स्नेह मिला आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2014 at 11:16am

आदरणीय भाई जवाहरलाल जी ग़ज़ल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2014 at 11:15am

आ० भाई मुकेश जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2014 at 11:13am

आ० गीतिका जी प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2014 at 11:12am

आ० भाई गिरिराज जी , ग़ज़ल पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर महसूस हो रहा है की ग़ज़ल लेखन में निरंतर सुधार हो रहा है l स्नेह बनाये रखे l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2014 at 11:03am

आ० भाई सुरेंदर जी , ग़ज़ल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l

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