जब से उस युवा चींटे के पँख निकले थे वह हवा बातें करने लगा था. उसने सभी परिजनों और मित्रजनो पर अपने नए नए निकले पँखों का रुआब डालना शुरू कर दिया था, उसका आत्मविश्वास देखते ही देखते आत्ममुग्धता का रूप धारण कर गया। इस बदले हुए स्वरूप को देख देख उसकी माँ रूह तक काँप जाती. लाख समझाने पर भी बेटा यथार्थ के धरातल पर आने को तैयार न हुआ तो एक दिन बूढ़ी माँ ने अपनी बहू को सफ़ेद जोड़ा देते हुए भरे गले से कहा "इसे अपने पास रख ले बेटी।"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
गजब अंदाज़ में आपने बहुत ही सटीक बात कही है आदरणीय सर | बहुत बहुत बधाई |
आज के युवावर्ग का सटीक विश्लेषण और एक बहुत बड़ी सीख देती हुई सचेत करनी कथा ..
सार्थक और नितांत आवश्यक उत्कृष्ट रचना ..... बहुत बहुत बधाई सर !
आ० सौरभ भाई जी, सब से पहले तो रचना पर पधारने के लिए आपका हार्दिक आभार। मेरे पँजाबी के प्रोफेसर हुआ करते थे - डॉ दरबारा सिंह जी. उनका कहना था कि गलतफहमी तो कान के नीचे दो लप्पड़ लगाने से हट भी सकती है, लेकिन खुशफहमी ऐसी नामुराद बीमारी है जो चिता तक भी पीछा नहीं छोड़ती। ऐसे खुशफ़हम शोहदों की जनसंख्या जिस रफ़्तार से बढ़ रही है उस से आप भी वाक़िफ़ हैं. बहरहाल, आपकी इस सार्थक प्रतिक्रिया और रचना की सराहना हेतु आपको दिल से धन्यवाद कहता हूँ.
लघुकथा को मान और समय देने के लिए बेहद शुक्र्गुज़ार हूँ आ० भाई ब्रजेश जी.
आ० विजय निकोर जी, आपकी प्रशंसा मेरे लिए बहुत मायने रखती है. आपने जिस तरह मुक्त कंठ से रचना को सराहा, उसके लिए आपका ह्रदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ.
भाई शिज्जू शकूर जी, लघुकथा आपको सार्थक लगी यह जानकर संतोष हुआ, आपका दिल से शुक्रिया।
आपने रचना की आत्मा को पहचाना है भाई शुभ्रांशु जी. जैसा मैंने पहले भी निवेदन किया है यहाँ सारे पात्र प्रतीकात्मक हैं, भले ही वो नर चींटा हो, उसके पंख हों, उसकी माँ हो या उसकी बीवी। कहने का तातपर्य मात्र इतना ही है कि जब समझने-बुझाने के बावजूद भी कोई अहमक आत्ममुग्धता नामी बीमारी का शिकार होता है तो सफ़ेद लिबास उसकी विधवा प्रतिभा के हिस्से आता है. बहरहाल, लघुकथा पसंद करने हेतु दिल से आपका आभार व्यक्त करता हूँ.
आज की ज्वलंत समस्या है जहाँ नवयुवा वर्ग कुछ समझने को तैयार नहीं जब तक बात उनके समझ में आती है देर हो चुकी होती है। आदरणीय योगराज सर इस सार्थक लघुकथा के लिये सादर बधाई स्वीकार करें।
अपने बिलकुल सटीक विश्लेषण किया है आ० डॉ विजय शंकर जी, दिल से आभार।
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