कुछ ऐसी बात कह देना बे आवाज, महज़ इशारों से
जो नहीं कहनी चाहिये , किसी सूरत नहीं
या , कुछ ऐसी बात न कहना जिसे कह देना ज़रूरी है
किसी के भले के लिये ,खुशी के लिये , वो भी इसलिये
ताकि हम छीन सकें , किसी के होठों की हँसी
नोच सकें किसी के मन की शांति
उतार सकें , बिखरा सकें
विचारों के , भावों के समत्व को
अन्दर के प्यार को , ममत्व को
छितरा सकें मन की शांति
ताकि टूट जाये , बिखर जाये किसी का व्यक्तित्व
किसी को कानो कान पता न चले और शिकार घायल
बिना किसी दृश्य हथियार के , ख़ामोश साजिशों से
निर्दोष सी लगने वाली क्रियाओं से
या सोद्देश्य निष्क्रियता से
ये सब भी एक हथियार ही हैं , ख़ामोश, अदृश्य , सटीक मारक शक्तियों से युक्त
कोई छोटी मोटी बात नहीं होती इसे हासिल करना
यूँ ही प्राप्त नही होती ये ख़ासियतें , शक्तियाँ
सतत अभ्यास की ज़रूरत होती है , साधना है ये भी
लेकिन, ये अच्छी बात है
यह साधना भी अब दिख जाती है , यदा कदा
बहुत हैं साधना रत , कुछ साध भी चुके हैं
क्योंकि, हर सफलता बधाई योग्य होती है , सकारात्मक हो या नकारात्मक
सो , बधाइयाँ , उन सभी को
एक बात और ,
हत्या केवल शरीर की हत्या को समझना अधूरी समझ है ,
क्या ऐसा नहीं है ?
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आप कहाँ से कहाँ की बातें कर गये, आदरणीय गिरिराजभाईजी.
इस अदभुत तटस्थता के कारण ही सार्थक बिम्ब उभर पाये हैं. इसे यों ही बनाये रखें. कविता वाकई अच्छी हुई है.
सादर
आदरणीय आशुतोष भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय अरुण अनंत भाई , आप तक बात पहुँच पाई तो कहना सार्थक हुआ । सराहना के लिये आपका दिली आभार ॥
आदरणीय गिरिराज भाई साब ..आज बिलकुल अलग ही अंदाज में अप्पकी एक रचना से रूबरू होने का मौका मिला ..m..आध्यत्मिक और गूढ़ इस रचना के मधायमअ से आपने अनूठा सन्देश दिया है .मेरी तरफ से इस रचना पार हार्दिक बधाई सादर
आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही गहन अभिव्यक्ति चुपचाप बहुत कुछ कह दिया आपने इस सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय सुशील सरना भाई , चिंतन के मुखर अनुमोदन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय लक्ष्मण भाई , रचना को अपका अमूल्य समय देने के लिए और सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥
१०० % सहमत हूँ आपके कथन से आदरणीय गिरिराज भंडारी जी .... इस सुंदर और दिल को छूने वाली प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
आ० भाई गिरिराज जी , यह सत्य है की हम केवल दैहिक हत्या को ही हत्या कहते हैं और निश्चित तौर पर हमारा ज्ञान ही है .साथ में यह भी सत्य है की जब आत्माएं संवेदनहीन हो चुकी हों तो आत्मिक हत्या को हत्या कैसे समझा जा सकता है . बहरहाल इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई l
आदरणीया राजेश जी , किंतन के केन्द्रीय भाव से सहमति के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
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