2121 222 2121 222
मानसूनी बारिश के, क्या हसीं नज़ारे हैं।
रंग सारे धरती पर, इन्द्र ने उतारे हैं।
छा गया है बागों में, सुर्ख रंग कलियों पर,
तितलियों के भँवरों से, हो रहे इशारे हैं।
सौंधी-सौंधी माटी में, रंग है उमंगों का,
तर हुए किसानों के, खेत-खेत प्यारे हैं।
मेघों ने बिछाया है, श्याम रंग का आँचल,
रात हर अमावस है, सो गए सितारे हैं।
सब्ज़ रंगी सावन ने, सींच दिया है जीवन,
बूँद-बूँद बारिश ने, मन-चमन सँवारे हैं।
भर दिये हैं रिमझिम ने, प्रेम रंग जन-जन में
मन को बहलाने के, ये सुखद सहारे हैं।
भाव रंग बरखा के, गा रहे सुमंगल गीत,
धार-धार अमृत से, तृप्त स्रोत सारे हैं।
ज्यों बदलते मौसम हैं, रंग भी बदल जाते,
‘कल्पना’ जुड़े इनसे, शुभ दिवस हमारे हैं।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
छा गया है बागों में, सुर्ख रंग कलियों पर,
तितलियों के भँवरों से, हो रहे इशारे हैं।
सौंधी-सौंधी माटी में, रंग है उमंगों का,
तर हुए किसानों के, खेत-खेत प्यारे हैं।
ऐसे शेरों के माध्यम से बरसात के मौसम को ग़ज़ल के साँचे में बखूबी उतारने की कोशिश हुई है, आदरणीया कल्पना जी.
सादर बधाई स्वीकार करें.
आप सब मित्रों ने मानसून का खूब आनंद लिया, प्रोत्साहित करने के लिए आप सबका हार्दिक आभार
वाह! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल! वर्षा ऋतु का पूरा आनंद आ गया! आपको बहुत-बहुत बधाई दीदी!
सुंदर रचना
आदरणीया कल्पना जी वाह बहुत ही सुन्दर बरसाती ग़ज़ल कही है आपने पढ़कर भीगा भीगा महसूस कर रहा हूँ दिल से बधाई प्रेषित है स्वीकार कीजिये.
सौंधी-सौंधी माटी में, रंग है उमंगों का,
तर हुए किसानों के, खेत-खेत प्यारे हैं......बहुत सुंदर, बधाई स्वीकारें आदरणीया कल्पना जी
आ0 रामानी दी'जी, //मानसूनी बारिश के, क्या हसीं नज़ारे हैं।
रंग सारे धरती पर, इन्द्र ने उतारे हैं। // ---सुन्दर गजल। बधाई स्वीकारें । सादर,
वाह.. वाह... बरसात के मौसम का कितना खूबसूरत चित्र उकेरा है आपने बहुत सुन्दर आ० कल्पना दी हार्दिक बधाई आपको |
वाह ! अत्यंत सुन्दर गजल !
महनीया
अतीव सुन्दर i
मानसूनी बारिश के, क्या हसीं नज़ारे हैं।
रंग सारे धरती पर, इन्द्र ने उतारे हैं।
छा गया है बागों में, सुर्ख रंग कलियों पर,
तितलियों के भँवरों से, हो रहे इशारे हैं।
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