गीतिका छन्द......पीपल का वृक्ष
सत्य संकल्पों सहित इक बीज बोया था कभी।
ब्रह्म का अवतार हितकर पूजते पीपल सभी।।
चंचला हैं पत्र निश्छल शक्ति शाखा भॉंपते।
छॉंव शीतल भाव भर कर शांति-सुख नित बॉंटते।।1
देव का उपकार पीपल दु:ख दारूण काटता।
सूर्य-शनि से मुक्त करके दीप लौ को साधता।।
वासना दूषित मन: को सत्य का परिणाम दे।
भूत-प्रेतों को शरण रख मुक्ति आठो याम दे।।2
कामना फलती सदा यदि साधना सत्कार हो।
धैर्य-साहस-चेतना गुण शोध का आधार हो।।
हर परि-िस्थति में जिएं पीपल हमारा सार हो।
सिर चढ़े दुश्मन अगर तो धारणा प्रतिकार हो।।3
ज्ञान से परिपूर्ण पीपल स्वर्ग सा सुख भोगता।
मान में, सम्मान में सत्यम- शिवालय शोभता।।
दिव्य नैसर्गिक हवा को पत्र पल-पल हॉकते।
शब्द-सरगम-ताल लय में राग हर-हर बॉचते।।4
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Comment
पीपल वृक्ष का सामाजिक, आर्थिक और हमारे शास्त्रानुसार सांस्कृतिक महत्व है | इसकी महत्वता बताते हुए रचित
सुंदर गीतिका रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री केवल प्रसाद जी
आदरणीय केवल भाई जी काफी समय बाद आपकी रचना यहाँ पढ़कर अच्छा लगा पीपल की महत्ता को बहुत ही सुन्दरता से परिभाषित किया हैं आपने गीतिका छंद के माध्यम से. मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.
मुझे बृह्म और शाक्ति पर संदेह है क्या यह ठीक हैं?
केवल जी
अति सुन्दर गीतिका है i बहुत बधाई i
आदरणीय केवल जी, पीपल की महत्ता पर सधी हुई छंदोबद्ध रचना हुई है, हार्दिक साध्वाद एवं सदभावनाएँ !
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