बीबी जी, आप नौकरी क्यों करते हो ? आपके पास तो पैसे की कोई कमी नहीं है |"
"पैसा ही सब नहीं होता रे जिंदगी में, आखिर इतनी पढ़ाई लिखाई कब काम आएगी" मैंने अपनी काम वाली बाई को समझाते हुए कहा.
अभी कुछ दिन पहले ही जब उसने तनख्वाह बढ़ाने की प्रार्थना की थी मैंने बड़े ही कठोर लहजे में मना कर दिया था | आज शायद पढ़ाई लिखाई का महत्त्व बाई की समझ में आ गया था |
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
जी कुछ और लिखी हैं इसी मंच पर , कृपया बताएं कैसी हैं..
//ऐसे ही उत्साहित करते रहिये..//
अवश्य, किन्तु, इसके लिए आपको अच्छा लिखते रहना होगा... .
शुभ-शुभ
आभार सौरभजी , ऐसे ही उत्साहित करते रहिये..
विलम्ब से इस लघुकथा पर आ रहा हूँ. एक सशक्त लघुकथा के सभी विन्दुओं को संतुष्ट करती इस प्रस्तुति ने गहरे प्रभावित किया है. समस्या को ससमाधान प्रस्तुत किया जाना इस कथा को आवश्यक गहराई देता है. वस्तुतः ऐसा विन्यास कम ही हो पाता है. मैं आपकी किसी रचना से पहली बार गुजर रहा हूँ.
हृदय से बधाई स्वीकारें, आदरणीय.
शुभ-शुभ
आभार रवि प्रभाकरजी..
प्रिय मित्रवर,
एक सफल लघुकथा की प्रस्तुति पर आपको ढेरों शुभकामनाएं
आभार सुभ्रांशुजी और अरुणजी ..
आदरणीय विनय जी बहुत ही सुन्दर लघुकथा आपको हार्दिक बधाई
आदरणीय विनय जी,
कथा वाचक के बदलने से कथा का मतलब पूरी तरह से बदल जाता है, अगर ये ही कथा बाई के द्वारा कही गयी होती तो इसका सार कुछ और निकलता. लेकिन मालकिन के द्वारा कथा कहने से ये एक संदेश परक कथा बन गयी है...सुन्दर कथा
सादर.
आभार लक्ष्मणजी और जितेंद्रजी..
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