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ग़ज़ल - - ' ज़िन्दगी क्यूँ है उधारी सी ' ( गिरिराज भंडारी )

2122      2122        2

कुछ  परायी  कुछ  हमारी  सी

ज़िन्दगी  क्यूँ   है  उधारी  सी

 

अश्क़ों की  नदियाँ  थमीं तो  हैं

सिसकियाँ अब तक हैं जारी सी

 

लोग कहते हैं  कि  जी ली, पर

ज़िन्दगी  लगती   गुजारी  सी

 

बदलियों के सामने  क्यों  धूप

हो  रही  है  इक  भिखारी  सी

 

आसमाँ रोया  बहुत  था  कल

आज  सूरत  है  निखारी  सी

 

हर तरफ़  घायल हुआ हूँ   मै

बात  शायद   थी  दुधारी  सी

 

बेक़रारी   दिल   में   तारी  है

इक ग़ज़ल हो जाये प्यारी  सी

*****************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

Views: 759

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 7:30pm

आदरणीय केवल भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 7:29pm

आदरणीय नीलेश भाई , आपसे सराहना पाना मेरे लिये बड़ी खुशी की बात है , उत्साह वर्धन का कारण है ॥ आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 7:27pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , आपकी सराहना से मेरा हौसला दोबारा हो गया है , आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 7, 2014 at 6:29pm

आ0 भण्डारी भाईजी,   प्रणाम!   भाई जी,  हर गिरह में नाद अतिउत्तम, इस गजल  को दाद देता हॅंू।  सादर,

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 5:51pm

बहुत ख़ूब 

बदलियों के सामने  क्यों  धूप

हो  रही  है  इक  भिखारी  सी..बहुत सुंदर चित्रण ..वाह वाह 
बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 3:25pm

वाह आदरणीय ग़ज़ल सिर्फ प्यारी ही नहीं लाजवाब है एक एक अशआर सुन्दरता से बन पड़े हैं सभी अशआरों पर दिली दाद कुबूल फरमाएं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 3:15pm

आदरणीय आशुतोष भाई , गलकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 3:13pm

आदरणीया राजेश जी , उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 7, 2014 at 2:27pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब //बहुत ही प्यारी ग़ज़ल है 

हर तरफ़  घायल हुआ हूँ   मै

बात  शायद   थी  दुधारी  सी...

लोग कहते हैं  कि  जी ली, पर

ज़िन्दगी  लगती   गुजारी  सी...बिलकुल सच 

कुछ  परायी  कुछ  हमारी  सी

ज़िन्दगी  क्यूँ   है  उधारी  सी........कमाल की सोच 

इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर प्रणमा के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 7, 2014 at 12:30pm

और लो हो गई इक ग़ज़ल प्यारी सी ...कोई शक़ नहीं ,बहुत बढ़िया तहे दिल से बधाई इस ग़ज़ल के लिए आ० गिरिराज जी |

कृपया ध्यान दे...

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