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कभी महसूस कर मेरी कमी भी
तेरी आँखों में हो थोड़ी नमी भी
नदी की धार सी पीड़ा बही, पर
किनारों के दिलों में क्या जमी भी ?
खुशी तो है उजालों की, मगर क्यों
कहीं बाक़ी दिखी है बरहमी* भी ( खिन्नता )
उड़ाने आसमानी भी रखो पर
तुम्हे महसूस होती हो ज़मी भी
ये रिश्ता किस तरह का है बताओ ?
अदावत* भी हमी से, हमदमी भी ( दुश्मनी )
उफ़क पे देख लाली है खुशी पर
हवायें लग रहीं हैं कुछ थमी भी
मुझे अफ़सोस है सारे इरादे
अभी कमज़ोर हैं, कुछ मौसमी भी
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
ये रिश्ता किस तरह का है बताओ ?
अदावत* भी हमी से, हमदमी भी ( दुश्मनी )
उफ़क पे देख लाली है खुशी पर
हवायें लग रहीं हैं कुछ थमी भी
मुझे अफ़सोस है सारे इरादे
अभी कमज़ोर हैं, कुछ मौसमी भी------बहुत सुन्दर ग़ज़ल ये तीन अशआर तो बहुत ही खूबसूरत हैं तहे दिल से दाद कबूलिये आ० गिरिराज भंडारी जी
ये रिश्ता किस तरह का है बताओ ?
अदावत* भी हमी से, हमदमी भी
आदरणीय गिरिराज जी, यह लाइन वाकई बहुत ही मार्मिक है बहुत बहुत बधाई आपको और खास कर इस लाइन के लिये उड़ाने आसमानी भी रखो पर
तुम्हे महसूस होती हो ज़मी भी आपको तहे दिल से बधाई
आदरणीय जितेन्द्र भार , आपकी सलाह सर आखों पर , निकल ही लिया !! सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय नादिर खान भाई , आपकी सरहना मेरा सँबल है , इस स्नेहिल सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
ये रिश्ता किस तरह का है बताओ ?
अदावत* भी हमी से, हमदमी भी .............बस,,,बच निकलो
बहुत बढ़िया गजल आदरणीय गिरिराज जी, आपको हार्दिक बधाइयाँ
कभी महसूस कर मेरी कमी भी
तेरी आँखों में हो थोड़ी नमी भी
नदी की धार सी पीड़ा बही, पर
किनारों के दिलों में क्या जमी भी
आदरणीय गिरिराज जी, सीधे और सरल शब्दों मे बहुत प्यारी गज़ल कही आपने ..बहुत मुबारकबाद ...
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल प्रशंशा के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीया वेदिका जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय संतलाल भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥
अति सुन्दर
मतले से ही -
कभी महसूस कर मेरी कमी भी
तेरी आँखों में हो थोड़ी नमी भी
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