For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गंगा के फ़ूल (लघु कथा) // --शुभ्रांशु पाण्डेय

छपाक्… ! 

मन्नू ने गंगा में कूद कर यात्रियों के चढ़ाये नारियल और फूल छान लिये. 

“अरे ये क्या किया.. जाने देते.. ”, एक यात्री डपटता हुआ चिल्लाया, “..फ़िर किसी और को बेच दोगे.. साले पूजा की चीजें भी नहीं छोडते हैं ये..” 
“जब पूजा करना तो बोलना.. वर्ना सरकार ने अब गंगा को गंदा करने वालों को जेल भेजना शुरु कर दिया है..”, एक तिरछी मुस्कान के साथ मन्नू ने आँख मारी. 

==========

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 791

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on July 25, 2014 at 9:20am

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, 

कथा पर विचार देने के लिये धन्यवाद.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 25, 2014 at 9:18am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, 

कथा पर समय देने के लिये धन्यवाद.

सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 24, 2014 at 9:58am

एक तिरछी मुस्कान के साथ मन्नू ने आँख मारी." - इस पंक्ति पर आते आते कहानी का मन में जाग्रत होता उद्धेश ही बदल

गया | अर्थात वह गंगा की सफाई के बहाने पुनः बेचने के लिए पूजा में चढ़ाएं नारियल फूल आदि निकाल कर भक्तो की

भावनाए आहत कर रहा है | जो भी मकसद हो, अच्छी लघु कथा हुई है | बधाई   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2014 at 6:09pm

हाँ, ’रंगीन पन्ने’ एक उत्कृष्ट लघुकथा रही है.  मुझे विस्मरण हुआ इसका खेद है. किन्तु यह भी आवश्यक है कि रचना प्रस्तुति की आवृति बढ़ाई जाये. .. :-))

Comment by Shubhranshu Pandey on July 22, 2014 at 8:56pm

आदरणीय सौरभ भैया,

आप लोगों के सानिध्य में अभी कलम पकड़ना सीखा है. इस मंच ने एक जोश भरा कि मैं कुछ लिख सकता हूँ. अमुमन व्यंग्य से अपनी बात कहता हूँ. पिछले दिनों योगराज जी और आपके लघु कथा पर विस्तृत कामेण्ट केबाद लघु कथा पर हाथ आजमाया है.

इस कथा से पहले भी //रंगीन पन्ने// एक लघुकथा पोस्ट कर चुका हू.

कथा पर अपने विचार देने के लिये घन्यवाद

सादर.

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 22, 2014 at 8:54pm

आदरनीय , एक अच्छी लघुकथा के लिये बधाई ॥

Comment by Shubhranshu Pandey on July 22, 2014 at 7:24pm

आदरणीय विनय जी,

रचना पर समय देने के लिये धन्यवाद.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2014 at 3:14pm

समाज में प्रचलित कई-कई विसंगतियों को परिपाटियों का रूप मिल गया है. मन्नू जैसे किशोर ऐसे तीर्थों के होने के वर्तमान अर्थ भी जानते हैं और भीड़ के रूप में जमा हुए लोगों की मूल भावना को भी समझते हैं. तो वहीं पंथीय परिपाटियों के नाम पर भावनाओं के दोहन का खेल भी उन्हें खूब पता होता है. ऐसे विन्दुओं को समेटती यह लघुकथा बहुत कुछ साझा करती है.

संभवतः, आपके व्यंग्यकार से पहली लघुकथा सुन रहा हूँ. उस हिसाब से यह लघुकथा आशान्वित करती है.

बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ..

Comment by Shubhranshu Pandey on July 21, 2014 at 11:49pm

आदरणीय जितेन्द्र जी, कथा पर अपने विचार देने के लिये धन्यवाद. 

सादर.

Comment by विनय कुमार on July 21, 2014 at 9:44pm

बहुत उम्दा लघुकथा सुभ्रांशुजी , साधुवाद..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
8 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service