For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गंगा के नाले (लघु कथा) // --शुभ्रांशु पाण्डॆय

"अरे वाह आज तो मजा आ गया", रमेश घर में घुसते ही चहकते हुये बोला, ".. दुकानदार ने सामान का बिल बनाते समय साढ़े पाँच सौ रुपये कम जोड़े !"

“पापा, फ़िर तो आपको वो लौटा देना था न !”, बेटी नेहा ने अपनी आँखो को और बडा़ करते हुये कहा.

“पागल हो क्या ?”, मानों उसकी नादानी पर हँसते हुये रमेश ने कहा, “.... आज हम पार्टी करेंगे…”

 

नेहा के मन में टीचर की बतायी बातें कौंध गयीं, “गंगा में तमाम नदियाँ ही नहीं मिलतीं, शहरों के गंदे नाले भी गिरते हैं.”

उसे लगा, वो गंगा में गिरने वाले एक बड़े-से फ़ेनिल नाले के मुहाने पर खडी़ है.

 

(मौलिक और अप्रकशित)

Views: 664

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 3, 2014 at 8:13pm

//नेहा के मन में टीचर की बतायी बातें कौंध गयीं, “गंगा में तमाम नदियाँ ही नहीं मिलतीं, शहरों के गंदे नाले भी गिरते हैं.” उसे लगा, वो गंगा में गिरने वाले एक बड़े-से फ़ेनिल नाले के मुहाने पर खडी़ है. //

इन नालों को न नकारते बनता है, न स्वीकारते. ये नाले अपने भौतिक स्वरूप में समस्या तो हैं ही, लाक्षणिक तौर पर भी वैेसी ही समस्या होते हैं.

इस लघकथा को लेकर एक अत्यंत संयत प्रयास हुआ है.  इस प्रयास के लिए हृदय से बधाई और शुभकामनाएँ..

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 3, 2014 at 9:30am
आदरणीय शुभ्रांशु भाई जी! अत्यंत मर्मस्पर्शी लघुकथा । निस्संदेह प्रायः बच्चे हम बड़ों से ही बुराई सीखते हैं।
Comment by Shubhranshu Pandey on July 30, 2014 at 12:05am

धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी. 

Comment by Shubhranshu Pandey on July 30, 2014 at 12:03am

कथा पर समय देने के लिये धन्यवाद आदरणीया वन्दना जी.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 30, 2014 at 12:03am

धन्यवाद आदरणीय विनय जी.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 30, 2014 at 12:02am

आदरणीय डा गोपाल नारायण जी, 

कथा पर समय् देने के लिये धन्यवाद.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 29, 2014 at 11:37pm

आदरणीय जितेन्द्र जी, कथा पर विचार रखने के लिये धन्यवाद. 

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 29, 2014 at 11:23pm

बहुत बढ़िया लघु कथा ---जिसे पढ़ कर मुझे एक पुराना वाकया याद आया ,एक बार जब बैंक कम्प्यूटर से कनेक्ट नहीं थे मेरे पति पासबुक अपडेट कराने गए तो वहां क्लर्क ने १० ००० अर्थात दस हजार में एक और जीरो लगाकर पासबुक अपडेट कर दी जो बाद में वो अपने रिकार्ड में भी लिख दी ,घर आकर जब देख तो हम दोनों अचरज में पड़ गए मेरे पति उसी वक़्त बैंक पँहुचे और उस क्लर्क को उसकी गलती बताई वो मेरे पति के पैरों में पड़ गया ....उस घटना से मेरी नजरों में मेरे पति की इज्जत दोगुनी बढ़ गई .सच लिखा आपने लघु कथा की  उस लड़की को ऐसा ही एहसास हुआ होगा ,क्यूंकि बच्चे अपनी टीचर की बात को पत्थर की लकीर समझते हैं ,आपको बहुत बहुत बधाई इस लघु कथा के लिए 

Comment by vandana on July 29, 2014 at 8:56pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय 

Comment by विनय कुमार on July 29, 2014 at 5:28pm

ये फ़र्क़ आज हर जगह पाया जाता है , हम ये नहीं सोचते कि बच्चों को क्या उदहारण प्रस्तुत कर रहे हैं | बहुत बढ़िया लघुकथा , बधाई |   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
4 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
18 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
22 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
22 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय, बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, एक साँस में पढ़ने लायक़ उम्दा ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद। सभी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service