मरा था मैं तड़प कर वो जमाना भी भुला देना
बसाया था तुझे दिल में फसाना भी भुला देना
जले खुद थे चरागो से बचाया था तुझे हमने
नहीं ये राह फूलो की बताना भी भुला देना
सहे है दर्द हम कितने पता हो तो जरा बोलो
छुपा कर दर्द मेरा मुस्कुराना भी भुला देना
निगााहो में बसाया था तुझे आखे बनाया था
चली जो छोड़ कर अाँसू बहाना भी भुला देना
उड़े आंचल तुम्हारे थे सभाला था हवाओं से
कहा था कुछ हवाओं ने बताना भी भुला देना
मौलिक एवं अप्रकाशित
अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर
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सर्व प्रथम मैं देरी के लिये क्षमा चाहता हूँ मैं बाबा बरफानी के दर्शन के लिये गया हुआ था। हम आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आज जो कुछ भी हूँ आप सब की मेहनत का फल है आशीवाद बनाये रख्ेा।
सर्व प्रथम मैं देरी के लिये क्षमा चाहता हूँ मैं बाबा बरफानी के दर्शन के लिये गया हुआ था। हम आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडीवाल जी
उम्दा भाव लिए सुंदर गजल श्री अखंड गहमरी जी | -
आदरणीय अखण्ड भाई , बहुत ही लाजवाब गज़ल कही है । हर शे र खूब सूरत हैं , पूरी ग़ज़ल के लिये मेरी दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥
कहींं कहीं टँकण की त्रुटियाँ हैं , सुधार लीजियेगा ॥
सुंदर भावों की सुंदर गजल … हार्दिक बधाई आदरणीय..... |
बहुत खूबसूरत गजल , आदरणीय भाई अखंड जी. दिली बधाइयाँ
आपके कहे में अब गहनता आने लगी है, भाई अखण्ड जी.
इस प्रयास के लिए दिल से बधाई लें .. .
शुभ-शुभ
bahut
बहुत खूब गहमरी जी
उड़े आंचल तुम्हारे थे सभाला था हवाओं से
कहा था कुछ हवाओं ने बताना भी भुला देना
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