१२२ १२२ १२२ १२
जहाँ गलतियाँ हों बता दें मेरी
चुभें ये अगर साफ़ बातें मेरी
तुम्हें जिन्दगी दी तो हक़ भी मिला
तुम्हारे कदम पे निगाहें मेरी
हर इक मोड़ पर तुम मुझे पाओगे
नहीं हैं जुदा तुमसे राहें मेरी
तुम्हें नींद आती नहीं है अगर
कहाँ फिर कटेंगी ये रातें मेरी
छुपा क्या सकोगे जबीं की शिकन
हमेशा पढ़ेंगी ये आँखें मेरी
तुम्हारी हिफ़ाज़त करूँ जब तलक
चलेंगी तभी तक ये साँसें मेरी
नहीं आज तुम कुछ समझ पाओगे
समझ जाओगे कल ये बातें मेरी
नसीहत लगें आज तुमको फ़कत
समझना इन्हें कल दुआएँ मेरी
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
तुम्हें नींद आती नहीं है अगर
कहाँ फिर कटेंगी ये रातें मेरी .. .
इस शेर के आलोक में मैं आपकी इस ग़ज़ल को देख गया, आदरणीया राजेश कुमारीजी.
यों, मैं भी ग़ज़ल को सब्जेक्टिव विधा नहीं मानता. ग़ज़लियत ग़ज़ल का प्राण है. इसी के कारण ग़ज़ल प्रभावी और प्रचलित है. उस हिसाब से आपकी इस ग़ज़ल के शेर निर्पेक्ष लगे हैं. शेरों को इसी कारण इन्हें दाद मिलनी चाहिये.
दिल से बधाई.. .
आ० डॉ गोपाल नारायण जी ,ग़ज़ल की नब्ज आपने पकड़ी है ,आपकी पारखी नज़र को सलाम/ नमन सच कहा इस ग़ज़ल में एक माँ के अपने बच्चों के प्रति होने वाली चिंता , फ़िक्र तथा प्रेक्षण को ही शब्दों में बांधा है मैंने,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया सादर.
जितेन्द्र गीत भैय्या ,आपको ग़ज़ल पसंद आई उसके अन्दर के दर्द को आप महसूस कर सके मानो मेरी ग़ज़ल सार्थक हुई ,तहे दिल से आभार आपका |
महनीया
यह तो माँ के दिल की आवाज लगती है i बेहद भावपूर्ण i बेटे को नसीहत भी देती हुयी i उसकी परीक्षा भी लेती हुयी i और यह शाश्वत सत्य भी कि -
नहीं आज तुमको समझ आएगा
समझ जाओगे कल ये बातें मेरी
नसीहत लगें आज तुमको फ़कत
समझना इन्हें कल दुआएँ मेरी
बहुत खुबसूरत गजल,आदरणीया राजेश दीदी. दिल में उठती पीर को बहुत खूबसूरत और धीमे-धीमे स्वर से बह्र में बाँध दिया आपने. दिली बधाईयाँ आपको
आ० डॉ विजय शंकर जी,ग़ज़ल आपको पसंद आई तहे दिल से आभार सादर .
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