क्यों होती बेटियाँ
थोड़ी पराईं सी ?
होती हैं बेटियाँ
माँ की परछाईं सी।
घर से वो निकलें जब
थोड़ा सा सहम-सहम
करती वो गलती बुरे
लोगों पर रहम कर
क्यों होती बेटियाँ
थोड़ी पछताईं सी?
जग करता मुश्किल
उनकी हर राहें
करतीं हैं पीछा शातिर निगाहें
क्यों होतीं बेटियाँ
तोड़ीं घबराईं सी ?
पैरों में उनके रिश्तों की पायल
तानें देके सभी करते हैं घायल
क्यों होती बेटियाँ
थोड़ी ठगाईं सी ?
पड़ता है उनको दूजे घर जाना
कैसे भी रिश्ते हों उनको निभाना
क्यों होतीं बेटियाँ
थोड़ी सकुचाईं सी ?
क्यों होती बेटियाँ
थोड़ी पराईं सी?
होती हैं बेटियाँ
माँ की परछाईं सी ।
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
आप सभी गुणी जनों की आभारी हूँ , और पाण्डेय सर, आप ने बिल्कुल सही कहा है। मैं पूरा ध्यान दूँगी बहुत शुक्रिया
बेटियों को लेकर सुन्दर भाव लिए रचे गीत के लिए हार्दिक बधाई
प्रस्तुति की कहन के लिए हार्दिक बधाई. यों, आपके प्रयास में गठन की आवश्यकता है आदरणीया .. प्रयासरत रहें.
सादर
माननीया
आपका अंदाज बढ़िया है i आप पहले उत्तर दे देती है फिर प्रश्न करती है i आपका कथन बहुत सुन्दर है i
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