चाँद की आँख में नमी होगी
लोगों को ईद पर खुशी होगी
चाँद हर रोज देखता है तुम्हें,
आपकी आज बेबसी होगी
जिंदगी रोज खून से लथपथ,
आज कैसे ये जिंदगी होगी
गर्दनें काट कर दिखाते हो,
क्या खुशी फिर भी ईद की होगी
अन्ध-विश्वास से लडाई है,
अब लडाई ये रोकनी होगी
छोड दो अपना-अपना कहना उसे,
इस तरह खत्म दुश्मनी होगी
आज इनसानियत है खतरे में,
क्या वजह है ये सोचनी होगी
इस तरफ ओट करके बैठे हो,
इस तरफ कैसे रोशनी होगी
छोड दो अपना कहना दुनिया को,
सारी दुनिया फिर आपकी होगी ।
………….सूबे सिंह सुजान..29.07.2014...
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आज इनसानियत है खतरे में,
क्या वजह है ये सोचनी होगी-----सुन्दर शेर
आ० गिरिराज जी की बात पर गौर करें कुछ शेर और स्पष्टता चाहते हैं बहरहाल आपको बधाई
बहुत खुबसूरत गजल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बधाई आपको
ख़ूबसूरत ग़ज़ल
आदरणीय
ईद पर इस गजल का स्वागत करता हूँ i भंडारी जी ने सारी बात कह दी है i
गर्दनें काट कर दिखाते हो,
क्या खुशी फिर भी ईद की होगी
आज इनसानियत है खतरे में,
क्या वजह है ये सोचनी होगी -------------- आ. सूबे सिंह भाई , अच्छी ग़ज़ल और इन दो अशार के ल्लिये आपको बधाइयां |
इन दो अशआर में आप जो कहना चाह रहे हैं वो शायद नहीं कहा पाए हैं , एक बार सोच के देखिएगा
अन्ध-विश्वास से लडाई है,
अब लडाई ये रोकनी होगी
इस तरफ ओट करके बैठे हो,
इस तरफ कैसे रोशनी होगी
aadarneeey sujan jee ..ईद के माध्यम से आपने लोकोपकारी सन्देश दिया है इसके लिए तहे दिल बधाई सादर
जितेन्द्र ी, बहुत बहुत सहयोग के लिये धन्यवाद
बहुत खुबसूरत गजल आदरणीय सूबे सिंह जी, हार्दिक बधाई आपको
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