दोहे // प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //
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ये मात्र दोहे हैं. चिकित्सा सलाह नहीं .
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मानस चरचा हो रही सुनो लगा कर ध्यान
भव सागर तरिहो सभी इसको पक्का जान
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मटर पराठा खा गये बैठे जितने लोग
लौकी सेवन नित करें भागें सगरे रोग
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लौकी रस इक्कीस दिन प्रातः पी लें लोग
रोग दोष फटके नही जीवन सुख सब भोग
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रोज करेला तोड़ कर उबाल रस पी जाय
जिगर गुर्दा रखे सही मुख पर कान्ति लाय
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पानी दूषित हो चला करता मानव खेल
उबला पानी नित पियो जिगर न होगा फेल
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मौलिक /अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
२७-७-२०१४
Comment
बहुत सुंदर, संदेशप्रद दोहावली पर आपको हार्दिक बधाई आदरणीय प्रदीप जी
कुशवाहा जी
दोहे शिक्षाप्रद हैं पर कही. कहीं शिल्प की समस्या है -एक बानगी , मानो ऐसा होता -
रोज करेला तोड़ कर रस उबाल पी जाय
जिगर और गुर्दा सही कान्ति वदन पर लाय
संदेस प्रद इन दोहों के लिए तहे दिल बधाई सादर
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