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जाने कहाँ विलुप्त हो गए बचपन के एहसास

हमसे बहुत दूर हो गए ममता भरे हाथ।

        

जिस प्यार के तले सीखा था जीने का अंदाज

अकेला छोड़ उड़ गए सुनहरे परवाज़

        

अपने जज़्बातों का मुकाम पाने को

बेताब है अपना नया घरौदा बनाने को

       

क्या पता किससे मिले, बिछड़े किसी से

कौन कहेगा तू रहना खुशी से,

        

जमाने की हाफा-दाफी ने भुला दिया-

अपनों के प्यार की दौलत को

ऊंचा उठने के मनोरथ ने मिटा दिया-

हो जैसे रौनक को

        

न जाने कैसे सांस ले रहे है जिंदगी के जज़्बात

कितने आँसू के घूंट पी रहे है नैनों के हर ख्वाब।

 

कल्पना ममिश्रा बाजपेई

मौलिक व अप्रकाशित 

             

                  

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Comment by coontee mukerji on July 30, 2014 at 12:45pm

न जाने कैसे सांस ले रहे है जिंदगी के जज़्बात

कितने आँसू के घूंट पी रहे है नैनों के हर ख्वाब।......बहुत सुंदर. कल्पना जी..हार्दिक बधाई.

Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 12:38pm

जितेंद्र भाई, आप ने रचना महसूस की । हार्दिक शुक्रिया /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 12:37pm

आदरणीया राजेश कुमारी दी , हार्दिक आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 12:36pm

आदरणीय विजय शंकर सर , आप को रचना पसंद आई । हार्दिक आभार /सादर 

Comment by harivallabh sharma on July 30, 2014 at 12:34pm

जज्बातों का बहुत सुन्दर अक्स खिंचा आपने ..बहुत भावपूर्ण रचना ..आदरणीया.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 30, 2014 at 11:45am

बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति... दिल के बहुत करीब लगी... बहुत- बहुत बधाई आपको  प्रिय कल्पना जी .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 30, 2014 at 11:40am

बहुत सुंदर लिखा, आपने आदरणीया कल्पना दीदी. सच! बचपन की वो मासूमियत भरे दिन न जाने कहाँ खो जाते है, सिर्फ याद बनकर रह्जाते है. बधाई आपको

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 30, 2014 at 11:39am
हरेक की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आता है
खुश रहो कहने वाला कोई नहीं रह जाता है ।
नाना नानी दादा दादी आदमी सब बन जाता है
कोई पहले नाम से पुकार ले मिल नहीं पता है ।
खुश रहो कहने वाला कोई नहीं रह जाता है ।
जो रचना कुछ बरबस बोलने को मजबूर करदे , वह अच्छी ही , बहुत अच्छी ही होगी , आदरणीय कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी , बधाई ,सादर .

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