For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जाने कहाँ विलुप्त हो गए बचपन के एहसास

हमसे बहुत दूर हो गए ममता भरे हाथ।

        

जिस प्यार के तले सीखा था जीने का अंदाज

अकेला छोड़ उड़ गए सुनहरे परवाज़

        

अपने जज़्बातों का मुकाम पाने को

बेताब है अपना नया घरौदा बनाने को

       

क्या पता किससे मिले, बिछड़े किसी से

कौन कहेगा तू रहना खुशी से,

        

जमाने की हाफा-दाफी ने भुला दिया-

अपनों के प्यार की दौलत को

ऊंचा उठने के मनोरथ ने मिटा दिया-

हो जैसे रौनक को

        

न जाने कैसे सांस ले रहे है जिंदगी के जज़्बात

कितने आँसू के घूंट पी रहे है नैनों के हर ख्वाब।

 

कल्पना ममिश्रा बाजपेई

मौलिक व अप्रकाशित 

             

                  

Views: 718

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on July 30, 2014 at 12:45pm

न जाने कैसे सांस ले रहे है जिंदगी के जज़्बात

कितने आँसू के घूंट पी रहे है नैनों के हर ख्वाब।......बहुत सुंदर. कल्पना जी..हार्दिक बधाई.

Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 12:38pm

जितेंद्र भाई, आप ने रचना महसूस की । हार्दिक शुक्रिया /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 12:37pm

आदरणीया राजेश कुमारी दी , हार्दिक आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 12:36pm

आदरणीय विजय शंकर सर , आप को रचना पसंद आई । हार्दिक आभार /सादर 

Comment by harivallabh sharma on July 30, 2014 at 12:34pm

जज्बातों का बहुत सुन्दर अक्स खिंचा आपने ..बहुत भावपूर्ण रचना ..आदरणीया.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 30, 2014 at 11:45am

बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति... दिल के बहुत करीब लगी... बहुत- बहुत बधाई आपको  प्रिय कल्पना जी .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 30, 2014 at 11:40am

बहुत सुंदर लिखा, आपने आदरणीया कल्पना दीदी. सच! बचपन की वो मासूमियत भरे दिन न जाने कहाँ खो जाते है, सिर्फ याद बनकर रह्जाते है. बधाई आपको

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 30, 2014 at 11:39am
हरेक की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आता है
खुश रहो कहने वाला कोई नहीं रह जाता है ।
नाना नानी दादा दादी आदमी सब बन जाता है
कोई पहले नाम से पुकार ले मिल नहीं पता है ।
खुश रहो कहने वाला कोई नहीं रह जाता है ।
जो रचना कुछ बरबस बोलने को मजबूर करदे , वह अच्छी ही , बहुत अच्छी ही होगी , आदरणीय कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी , बधाई ,सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service