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जन्म से ही यार जो बेशर्म है
पाप क्या उसके लिए, क्या धर्म है
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छेड़ मत तू बात किस्मत की यहाँ
साथ मेरे शेष अब तो कर्म है
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बोलने से कौन करता है मना
सोच पर ये शब्द का क्या मर्म है
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चाँद आये तो बिछाऊँ मैं उसे
एक चादर आँसुओं की नर्म है
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शीत का मौसम सुना है आ गया
पर चमन की ये हवा क्यों गर्म है
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( रचना - 30 जुलाई 2014 )
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
चाँद आये तो बिछाऊँ मैं उसे
एक चादर आँसुओं की नर्म है
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शीत का मौसम सुना है आ गया
पर चमन की ये हवा क्यों गर्म है///वाह वाह
बहुत बहुत बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण जी.... सादर
आ० भाई जीतेन्द्र जी , ग़ज़ल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए आभार .
आ० भाई गोपालनारायण जी ,ग़ज़ल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .
जन्म से ही यार जो बेशर्म है
पाप क्या उसके लिए, क्या धर्म है...........वाह! एकदम सीधा चुभ जाए
हरेक शे'र पर बधाई आपको आदरणीय लक्ष्मण जी
धामी भई बहुत अच्छे i
चाँद आये तो बिछाऊँ मैं उसे
एक चादर आँसुओं की नर्म है
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