बाजार से गुजरते हुए उसने एक बहेलिए के पास पिंजरे में कैद कुछ पंछी देखे। बहेलिए को पैसे देकर उसने पिंजरा खोल दिया। पिंजरा खुलते ही एक पंछी फुर्र से उड़ता आसमान की तरफ लपका। अनायास कुछ चीलें आई और उन्होनें उस पंछी को दबोच लिया। उड़ने के लिए तैयार बाकी पक्षी सहम कर पिंजरे में दुबक गए।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय विजय शंकर जी,
लघुकथा पर आपकी उपस्थिती हेतु धन्यवाद। आपने अपने बहुमूल्य समय में से जो समय लघुकथा को दिया व इसमें छुपे संदेश को समझा उस हेतु भी धन्यवाद। कृपा भविष्य में भी स्नेह बनाए रखें।
आदरणीय जितेन्द्र भाई,
आपकी बधाई सिर-माथे पर। लघुकथा की प्रशंसा हेतु धन्यवाद मित्रवर ।
आपकी लेखनी को नमन ,आदरणीय रवि जी. बहुत ही कम शब्दों में आपने आजादी को परिभाषित कर दिया :))
हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा
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