१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अगर तुम टूटने के दर्द को महसूस कर जाते
तो क्या खुद एक पल में टूटकर इतना बिखर जाते
रिदाएँ गर्द की जब तब हटाते आइनों से तुम
दिलों के फासले मिटते कई रिश्ते सँवर जाते
झुलसते जिस्म फसलों के उमड़ती प्यास धरती की
चिढ़ाते बेवफ़ा बादल इधर जाते उधर जाते
पहेली सी बने फिरते बड़े मदमस्त ये बादल
कहीं ख़ाली गरजते उफ़ कहीं हद से गुजर जाते
तुम्हारे झूठ के छाले लगे रिसने सफ़र लम्बा
सदाक़त की यहाँ है छाँव पल भर को ठहर जाते
मुहब्बत के दरीचों से जरा सी धूप मिल जाती
छतों की झिरकियाँ पटती मकाँ उनके सुधर जाते
जिया ख़ुर्शीद की उनकी तरफ भी मुस्कुरा देती
उजाले उन अभागों के चिरागों में उतर जाते
ये कैसे फैसले मालिक कँही सूखा कँही जल-थल
न चौखट पे तेरी आते बता तू ही किधर जाते
सदाक़त= सच्चाई
जिया---रोशनी/किरण /चमक
ख़ुर्शीद—सूर्य
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
सभी शेर बेहतरीन, बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल, हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --
"रिदाएँ गर्द की जब तब हटाते आइनों से तुम
दिलों के फासले मिटते कई रिश्ते सँवर जाते"
" सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई ...... " |
आ० डॉ. गोपाल नारायण जी,आपको सभी अशआर पसंद आये मेरा लिखना सफल हुआ आपकी इस जर्रानवाजी का तहे दिल से शुक्रिया.
आदरणीय
जब सभी मोती सच्चे हो तो किस किसकी तारीफ करें !
रिदाएँ गर्द की जब तब हटाते आइनों से तुम
दिलों के फासले मिटते कई रिश्ते सँवर जाते
तुम्हारे झूठ के छाले लगे रिसने सफ़र लम्बा
सदाक़त की यहाँ है छाँव पल भर को ठहर जाते
जिया ख़ुर्शीद की उनकी तरफ भी मुस्कुरा देती
उजाले उन अभागों के चिरागों में उतर जाते
आ० नरेंद्र सिंह जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया |
आ० गिरिराज जी,आपको ग़ज़ल के अशआर पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ |
प्रिय वेदिका जी,तहे दिल से आभार |
आ० डॉ.विजय शंकर जी, आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया आपका.
आदरणीय राजेश जी , लाजवाब ग़ज़ल कही है , बधाइयाँ |
पहेली सी बने फिरते बड़े मदमस्त ये बादल
कहीं ख़ाली गरजते उफ़ कहीं हद से गुजर जाते
तुम्हारे झूठ के छाले लगे रिसने सफ़र लम्बा
सदाक़त की यहाँ है छाँव पल भर को ठहर जाते
ये कैसे फैसले मालिक कँही सूखा कँही जल-थल
न चौखट पे तेरी आते बता तू ही किधर जाते ----------- ढेरों बधाइयाँ इन अश आर के लिए |
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