For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरने पे चोट नहीं लगती--डा० विजय शंकर

आजकल गिरने पे चोट नहीं लगती , तभी तो
लोग कहीं भी कितना भी गिरने को तैयार रहते हैं
चोट लगेगी भी कैसे , जब भी कोई गिरता है ,
कहीं भी गिरता है , पहले से वहां
काफी गिरे हुए लोग होते हैं ,
जो उसको गिरते ही हाथों हाथ ले लेते हैं ,
उसे चोट लगने ही नहीं देते हैं
उसके बाद तो और गिरने का डर भी नहीं रहता
गिरे को और क्या गिरने का डर होगा
बस गिरे रहिये , पड़े रहिये , रेंगते रहिये
ऊंचाई में, थोड़ा ऊपर जाने में
हमेशा गिरने का डर बना रहता है
कौन कब, कौन सी डोर खींच दे
और आप धड़ाम से गिर पडें
उस समय कोई हाथों हाथ नहीं लेगा
क्योंकि आप गिराये गए हैं
स्वयं नहीं गिरे हैं , अंतर है .
उठायेगा कोई क्या , हसेंगें सब
आजकल लोग ऊंचाई की बात ही नहीं करते हैं
नीचाई की ही बात करते हैं
कहते हैं जमीन पर सब बराबर होते हैं
सब के पाँव जमीन पर ही होते हैं ,
साथ , सहयोग , समर्थन सब होता है ,
ऊपर देखो, अजब विषमता है
हरेक सर अलग अलग ऊंचाई पर होता है
इसीलिये ऊंचे लोगों में कोई एका नहीं होता है
गिरे हुए लोगों में बड़ी एकता होती है
वैसे भी आप जितना ऊपर ऊंचे जायेगें
अकेले होते जायेंगें
आज के युग में अकेला होना ,
राम राम , राम , डर लगता है .
वैसे सुनते हैं , शेर - बाघों - चीतों
की प्रजाति को बचाने के प्रयास होते हैं
पर खतरा तो रहता ही है , अकेले को

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 612

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2014 at 6:22pm
आदरणीय महिमा श्री जी , रचना का इतना विशद मूल्यांकन करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .
Comment by MAHIMA SHREE on August 25, 2014 at 4:53pm

क्या बात है !!! बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति .. व्यंग की धार लगातार ..हँसी भी भी आई औ सोचने पे विवश भी कर दिया ..क्या  हो गया है हमारे समाज को ..वैसे देखा जाए तो सिर्फ कलयुग में नहीं हर युग में नैतिकता को ताक पे रखा गया अपनी व्यक्तिगत  आकाँक्षाओं के चलते .. सादर हार्दिक बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 23, 2014 at 2:45pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मीना पाठक जी
Comment by Meena Pathak on August 23, 2014 at 1:55pm

बहुत सुन्दर और सार्थक रचना ..हार्दिक बधाई आप को | सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 22, 2014 at 11:02pm
आदरणीय सौरभ पांडेय जी , आपके प्रसंशनीय शब्दों से रचना का मान बढ़ रहा है , मेरे लिये प्रसन्नता इसमें भी है कि रचना आपको अच्छी लगी . कृपया उत्साह बढ़ाते रहिये . बहुत बहुत धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 22, 2014 at 10:39pm
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी आपके प्रसंशनीय शब्द रचना का मान बढ़ा रहे हैं, मेरे लिए अधिक प्रसन्नता इसमें है कि रचना आपको अच्छी लगी . उत्साह बढ़ाते रहिये . बहुत बहुत धन्यवाद , सादर .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 10:17pm

अद्भुत कविता !  इसके अलावा और कुछ नहीं कहूँगा, आदरणीय. 

सही बात तो ये है कि इस मंच पर आपकी इतनी सशक्त और इतनी सार्थक कोई पहली कविता पढ़ रहा हूँ !

हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 22, 2014 at 9:26pm

विजय जी

ऐसी मौलिक सोच कहाँ से ले आये ?

अनुपम, अद्वितीय , अनिवर्चनीय , अद्भुत i

कहीं भी गिरता है , पहले से वहां
काफी गिरे हुए लोग होते हैं ,
जो उसको गिरते ही हाथों हाथ ले लेते हैं ,
उसे चोट लगने ही नहीं देते हैं
उसके बाद तो और गिरने का डर भी नहीं रहता
गिरे को और क्या गिरने का डर होगा
बस गिरे रहिये , पड़े रहिये , रेंगते रहिये

ऊपर देखो, अजब विषमता है
हरेक सर अलग अलग ऊंचाई पर होता है
इसीलिये ऊंचे लोगों में कोई एका नहीं होता है

 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 22, 2014 at 12:13pm
आपको बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्षमण प्रसाद धामी जी
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 22, 2014 at 11:22am

आदरणीय भाई  विजय शंकर जी इस विचारोत्तेजक रचना के लिए कोटि कोटि बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service