For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

( ग़ज़ल ) जलाने को तुम्हारे हौसले तैयार बैठे हैं (गिरिराज भंडारी )

१२२२  १२२२ १२२२ १२२२

करेंगे होम ही, लेकर सभी आसार बैठे हैं

जिगर वाले जला के हाथ फिर तैयार बैठे हैं

ज़रा ठहरो छिपे घर में अभी मक्कार बैठे हैं

जलाने को तुम्हारे हौसले तैयार बैठे हैं

 

बहारों से कहो जाकर ग़लत तक़सीम है उनकी

कोई खुशहाल दिखता है , बहुत बेज़ार बैठे हैं

 

समझते हैं तेरे हर पैंतरे , गो कुछ नहीं कहते

तेरे जैसे अभी तो सैकड़ों हुशियार बैठे हैं

 

तुम्हें ये धूप की गर्मी नहीं लगती यूँ ही मद्धिम

तपिश के सामने हम हैं , बने दीवार बैठे हैं

 

कभी सैलाब ने धोया , कभी सूखा सताता है

हमें बरबाद करने को बहुत से यार बैठे हैं

 

ये अपने घर का मस्ला है, इसे छोड़ो, कहीं रख दो

अभी तो मुल्क के दुश्मन लगे तैयार बैठे हैं

 

बहुत मायूस होने की ज़रूरत है नहीं साक़ी

क़तारों में अभी सौ - सौ तेरे बीमार बैठे हैं

********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

 

Views: 925

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on August 22, 2014 at 4:31pm
भाई गिरिराज जी , मीन- मेष मैं नहीं कर सकता ,मुझे पढ़ने में मजा आया और गजल का टोन बड़ा मस्ताना लगा |अनेक शुभकामनाएँ |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 3:46pm

वाह ! ग़ज़ब ग़ज़ल हुई है !  मगर ग़ज़ल का मतला काश इसके मुआफ़िक होता. 

इस शेर पर हज़ार दफ़े वाह -

तुम्हें ये धूप की गर्मी नहीं लगती, यूँ ही मद्धिम  ............. कॉमा क्यों लगाया, सर ?

तपिश के सामने हम हैं , बने दीवार बैठे हैं ..

आखिरी शेर के लिए विशेष बधाई.. बशर्ते आप ’अभी भी’ को दुरुस्त कर लें. 

सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 22, 2014 at 11:07am

बहुत मायूस होने की ज़रूरत है नहीं साक़ी

क़तारों में अभी भी सौ तेरे बीमार बैठे हैं

आदरणीय भाई गिरिराज जी, इस अंतिम शेर ने तो महफिल में रंगत भर दी । बहुत बहुत बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 21, 2014 at 9:25pm

आदरणीय आशुतोष भाई , हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 21, 2014 at 9:24pm

प्रिय अनुज रवि , इस स्नेह के लिए शुक्रिया , आब आपको अनुज ही सम्बोधित करूंगा | ग़ज़ल की सराहना के लिए बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 21, 2014 at 9:21pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , हौसला अफाजाई का शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 21, 2014 at 9:20pm

आदरणीय विजय शंकर भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका दिल से  आभारी हूँ |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 21, 2014 at 5:08pm

आदरणीय भाईसाब ..आपकी ये ग़ज़ल तो बहुत ही शानदार है ..हर दृष्टि से अच्छी लगी ..इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Ravi Prabhakar on August 21, 2014 at 1:37pm

परम आदरणीय गिरीराज भंडारी जी,
    चरण स्पर्श। आपके प्रत्युत्तर से मैं पूर्णतः संतुष्ट हूँ, चूँकि मैं पहले ही निवेदन कर चुका था कि ग़ज़ल के बारे में मेरा ज्ञान अति अल्प है परन्तु अपनी जिज्ञासावश मैनें आपसे यह सवाल किया था। एक बात आपसे सांझा करना चाहता हूँः पंजाबी के बहुत प्रसिद्ध लेखक हुए हैं भाई वीर सिंह जी । उनसे एक बार मेरे जैसे अल्पबुद्धि ने सवाल किया कि ‘अलफ़ से पहले क्या?’ उन्होनें उत्तर दिया ‘999’। जो उसको समझ में नहीं आया। परन्तु कुछ समय बाद उसे उर्दू का एक शब्दकोष मिला जिसमें उसने ‘अलफ़’ का अर्थ पढ़ा जिसके अनुसार ‘अलफ़’ को ‘1000’ भी कहा जाता था। सो आदरणीय कई बार मेरे जैसे अल्पबुद्धि कुछ बातों को समझ नहीं पाते। परन्तु आपने जैसे मुझे समझाया है मैं उसका धन्यवादी हूं। रचना मूल रूप में ही सुन्दर लग रही है, इसमें किसी परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं हैं। एक निवेदन और आप उम्र और अनुभव में मुझसे वरिष्ठ है और आप इस मंच के वरिष्ठ सदस्यों में से एक हैं, मुझे अति प्रसन्नता होगी कि आप मुझे आदरणीय कहने की बजाए स्नेहिल अथवा अनुज संबोधित करें। शुभकामनाएं।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 21, 2014 at 8:40am

बहुत ही बढ़िया गजल लगी. वाह! आदरणीय गिरिराज जी क्या कमाल के शे'र लिखे है आपने. तहे दिल से बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service