For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नव गीत ////आबाद होंगे कब जीवन मरुस्थल !

सोचता रहता हूँ

उदासियो में घिरकर

प्रतिक्षण-प्रतिपल 

आबाद होंगे कब जीवन -मरुस्थल ?

 

काल की क्रूरता ने

मेरे प्रयासों को

आशा-उजासो को

जीवन-विकल्पों को  

कर डाला धूमिल

कर्म हुआ निष्काम

कार्य भी निष्फल

आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?

 

सूने शून्य जीवन में

नियति के बंधन से

करुणा से क्रंदन से

पूरे जो न हो पायें

स्वप्न हुए चंचल  

पंगु प्रेरणा के पग

शान्त और निश्चल

आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?

 

प्रातः की बेला ने

मुस्क्याते फूलो से

सरिता के  कूलों से

सन्देश भेजा यूँ

लहराकर कलकल

रुकना ही मरना है

चलता जा अविरल

आबाद होंगे तब जीवन-मरुस्थल !

 

(मौलिक व अप्रकाशित )

 

   

Views: 684

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2014 at 5:39pm

आदरणीय सौरभ जी

ह्रदय का सागर प्रशांत है i  सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2014 at 5:37pm

शशि पुरवार  जी

आपको कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ I  सादर i  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2014 at 5:35pm

जीतू भैया

आभारी हूँ प्रिय i आप हमेशा हौसला बढाते है i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2014 at 5:33pm

मीना पाठक

आपके प्रोत्साहन से ह्रदय को बल मिला i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2014 at 5:32pm

डा 0  विजय जी

आपका ह्रदय से आभार i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2014 at 4:31pm

बहुत खूब आदरणीय.

आपकी यह रचना प्रभावित करती है.

Comment by shashi purwar on August 24, 2014 at 6:43pm

बहुत सुन्दर रचना भाव अभिव्यक्ति हृदय को छू रही है

सूने शून्य जीवन में

नियति के बंधन से

करुणा से क्रंदन से

पूरे जो न हो पायें

स्वप्न हुए चंचल  

पंगु प्रेरणा के पग

शान्त और निश्चल

आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?

 हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 24, 2014 at 12:41pm

सूने शून्य जीवन में

नियति के बंधन से

करुणा से क्रंदन से

पूरे जो न हो पायें

स्वप्न हुए चंचल  

पंगु प्रेरणा के पग

शान्त और निश्चल

आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?

बहुत सुंदर रचना, दिल को छू जाते भाव. ह्रदय से बधाई आपको आदरणीय डा. गोपाल जी

Comment by Meena Pathak on August 24, 2014 at 12:39pm

प्रातः की बेला ने

मुस्क्याते फूलो से

सरिता के  कूलों से

सन्देश भेजा यूँ

लहराकर कलकल

रुकना ही मरना है

चलता जा अविरल

आबाद होंगे तब जीवन-मरुस्थल !.................बेहद उम्दा , बहुत बहुत बधाई रचना हेतु | सादर 

 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2014 at 11:54am
प्रातः की बेला ने
मुस्क्याते फूलो से
सरिता के कूलों से
सन्देश भेजा यूँ
लहराकर कलकल
रुकना ही मरना है
चलता जा अविरल
आबाद होंगे तब जीवन-मरुस्थल !
प्रेरक , आकर्षक , आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service