For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए (ग़ज़ल 'राज')

12122 12122 1212

कभी लबों तक पँहुचता प्याला न छीनिए

 ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए  

 

यतीम का बचपना निराला न छीनिए

जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए

 

बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ      

नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए

 

नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता          

किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए

 

समान हक़ है मिला सभी को पढ़ाई का

गरीब बच्चों से  पाठ शाला न छीनिए 

 

जुड़े खुदा से वहाँ इबादत के तार हैं

उन उँगलियों में थिरकती माला न छीनिए

पुछल्ला ---

 यकीं नहीं है कि वो शराफ़त दिखायेगा 

 कभी किसी बेवड़े से हाला न छीनिए 

------------------------------

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1013

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2014 at 10:36am

आ० निलेश जी,ग़ज़ल पर आपकी सराहना व् परामर्श काबिले गौर है ये सुधार करने की कोशिश करुँगी ---जैसे बड़ी नहीं कोई चीज तहजीब से यहाँ ---शायद ये ठीक होगा ...इस और ध्यानाकर्षित करने का शुक्रिया
आपकी पुछल्ला परिक्रिया सुनकर हँसी आ गई ,खैर यदि इस प्रायोजन के तहत भी लिखती तो भी चलता एक नेक सलाह ही तो दे रही हूँ :)))))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2014 at 10:30am

चन्द्र शेखर पाण्डेय जी,मुझे ये पहले से ही पता था कि कुछ पाठक मतले पर जरूर बात करेंगे क्यूंकि लोगों की धारणा ही इस बात तक अटकी है की प्याला सिर्फ और सर्फ शराब/मय का होता है जबकि प्याला एक 'बर्तन' है कप या मग भी होता है खैर ये तो शब्द के अर्थ की बात रही अब लेखक ने इसका अर्थ किस प्रायोजन के तहत किया है वो उसका पक्ष है ..जो इस मतले के सानी से भी रिलेट हो सकता है अर्थात मुख तक पंहुचा प्याला ...चाय का भी हो सकता है ,किसी बच्चे के दूध का भी हो सकता है या जहर का भी हो सकता है :)))) मेरा मतलब या भाव ----सफलता से है अर्थात चरम तक पंहुची किसी की सफलता मत छीनिए. आपका दूसरा संशय ---न कोई तहजीब से बड़ी चीज है यहाँ ---तहजीब स्त्री लिंग है कोई शक नहीं किन्तु दोनों मिसरे स्वतंत्र हैं तो लिंग की बात नहीं आती ---आशा है मैं अपना पक्ष स्पष्ट कर पाई ,ग़ज़ल की समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आपका.
नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2014 at 10:18am

आ० डॉ. विजय शंकर जी,ग़ज़ल की सराहना के लिए आपको हार्दिक आभार.

Comment by Shyam Narain Verma on August 27, 2014 at 10:07am
" सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई ...... "
Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 27, 2014 at 8:38am

बहुत खूब ग़ज़ल है 
.
न कोई तहजीब से बड़ी चीज है यहाँ....आप तहजीब को बड़ा बता रही हैं लेकिन वाक्य न कोई तहज़ीब से शुरू हो रहा है ..इसे यदि संभव हो तो न कोई या उस नकारते हुए भाव के शब्द को पीछे रखने का प्रयास करें ..
ग़ज़ल के लिए बधाई ..
.
जैसे ग़ज़ल का पुछल्ला है वैसे ही कमेंट का पुछल्ला ..
यदि आपके मतले के ऊला पे सभी पत्नियाँ अमल करने लेगे तो कितने ही विश्व युद्ध थम जाएंगे.
वैश्विक शान्ति की दिशा में आपके प्रयास की मै सराहना करता हूँ :D
सादर  

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on August 27, 2014 at 12:54am

महनीया 

प्याला और निवाला ?? अगर रवायत को ध्यान मे रखा जाए तो दोनों उलट चीजें हैं एक विलासिता की चीज और दूसरी मूलभूत आवश्यकता। ये मेरी शंका मात्र है बाकी वरिष्ठ जनों से आग्रह है कि प्रकाश डालें //


न कोई तहजीब से बड़ी चीज है यहाँ     ( तहजीब से बड़ी चीज - स्त्रीलिंग )

नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए ( दुशाला पुल्लिंग है )

कृपया मार्गदर्शन करें 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 26, 2014 at 10:35pm
बहुत सुन्दर , कभी किसी गरीब के हाथ से निवाला न छीनिये , प्रशंसनीय , बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 26, 2014 at 9:02pm

प्रिय सविता मिश्रा जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका.  

Comment by savitamishra on August 26, 2014 at 7:06pm

खुबसुरत ....:)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 26, 2014 at 6:46pm

पवन कुमार जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
30 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service