अच्छा ही करते हैं
कितना भी अपना हो
खून का हो या अपनाया हो प्यार से
मर जाने पर जला देते हैं
मुर्दा शरीर
न जलाएं तो सड़ने का डर बना रहता है
फिर इन्फेक्शन , बीमारी का भय
ज़िंदा लोगों के लिए खतरा ही तो है , किसी का मुर्दा शरीर
और फिर भूलने में भी सहायता मिलती है
कब तक याद करें
कब तक रोयें
जीतों को तो जीना ही है
अच्छा ही करते हैं जला के
कुछ रिश्ते भी तो मुर्दा हो जाते हैं / सकते हैं
इनका क्या ?
बोझ ही तो होते हैं मुर्दा रिश्ते ,
लटकाए घूम रहे हैं
फिर से जीवित होने की आस में
मुर्दे भी कभी जीवित होते हैं , कहानियों को छोड़ कर
जो ये होंगे ज़िंदा
भावनाओं के बंटवारे में नाहक की हिस्सेदारी लिए मुर्दा रिश्ते
फ़ाज़िल पड़े, सड़ते, गलते
बीमारी ही फैलायेंगे, धोखे में न रहें
कर ही दिया जाय आज इनका भी
अंतिम संस्कार
जलाने वाले जला दें ,
गाड़ने वाले गाड़ दें , पर
कर ही दें अंतिम संकार
ताकि बचा सकें जीवित रिश्ते
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय जितेन्द्र भाई , रकाना के अनुमोदन के लिए आपका बहुत आभार |
आदरणीय विजय शंकर भाई , आपके विचारों से सहमत हूँ , रचना के अनुमोदन के लिए आपका बहुत शुक्रिया |
आदरणीया राजेश जी , आपका आभारी हूँ |
आदरणीया सविता मिश्र जी , आपकी सराहना के लिए आपका बहुत शुक्रिया |
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , रचना के अनुमोदन के लिए आपका आभार |
सच कहा आपने इन्फेक्शन का खतरा हो ही जाता है, रिश्ते मर गए हों उन्हें तुरंत जला देना चाहिए. लेकर घूमना बुद्धिमानी नही कहलाती.. बहुत कटु सत्य कहती रचना बधाई आपको आदरणीय गिरिराज जी
सच कहा कुछ रिश्ते भी मुर्दा हो जाते हैं जो नासूर बन जाते हैं उनको भुलाना ही ठीक है ..विचारणीय प्रस्तुति ..बधाई आपको आ० गिरिराज जी
bahut sundar .......रिश्तें मरते हैं क्यों नहीं मरते बस फर्क इतना है हम मुर्दों का दाह-संस्कार कर देतें है पर रिश्तो को धोतें है मज़बूरी है समाज थू थू करेगा ...जहाँ मजबूरियों को अनदेखा कर दिए है वहां वृद्धा-आश्रम गुलजार है ....सादर नमस्ते
मित्र
यह भी कटु सत्य है
रिश्ते भी मरते है
उनका संस्कार कर देना ही उचित है
संक्रमण से बचनेके लिए
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