शिक्षक यदि तुम गुरु बन जाते
कोटि-कोटि छात्रो के मस्तक चरणों में झुक जाते I
तुम ही अपना गौरव भूले
लोभ -मोह झूले पर झूले
व्यर्थ दंभ पर फिरते फूले
थोडा सा पछताते I
धर्म तूम्ही ने अपना छोड़ा
अध्यापन से मुखड़ा मोड़ा
राजनीति से नाता जोड़ा
तब भी न शरमाते I
कितनी धवल तुम्हारी काया
तुमने उस पर मैल चढ़ाया
शिक्षा को व्यवसाय बनाया
फिरते हो इतराते I
पद्धति की भी बलिहारी है
वोटो की मारा-मारी है
यह शिक्षा जग से न्यारी है
नत-शिर तनिक उठाते I
बच्चे विद्यालय में आते
बिना परिश्रम भोजन पाते
सर्व शिक्षा को सफल बनाते
हा ! प्रसून मुरझाते I
शिक्षक के दायित्व निराले
शासन कुछ भी काम करा ले
समय न दे फिर भी पढवा ले
हंसकर सब सह जाते I
बच्चे भी है बहुत सयाने
राजनीति की गति पहचाने
विद्यालय जाते है खाने
किसको मूर्ख बनाते ?
इससे बढ़कर खेल न होगा
कोई बच्चा फ़ैल न होगा
सचमुच नौ मन तेल न होगा
नैनों में जल छाते I
शिक्षक सचमुच बेचारे हो
हीन व्यवस्था के मारे हो
पर तुम दाहक अंगारे हो
तनिक ज्वलित हो जाते I
प्रिय अपना इतिहास टटोलो
आलास बंद आँखे कुछ खोलो
सरस्वती माँ की जय बोलो
जय से क्यों घबराते I
यदि तुम अपने पर आ जाओ
तुलसी, सूर, कबीर बनाओ
गीत भक्ति रस के कुछ गाओ
किंगरी मधुर बजाते I
जीवन की सच्चाई क्या है
संसृति की गहराई क्या है
ब्रह्म सत्य है जग मिथ्या है
सच्चा ज्ञान कराते I
तो फिर वीरासन पर आओ
शासन को भी पाठ पढाओ
जगत्गुरु फिर से बन जाओ
आशा ज्योति जगाते I
शिक्षक यदि तुम गुरु बन जाते
कोटि-कोटि छात्रो के मस्तक चरणों में झुक जाते I
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
शिक्षक सचमुच बेचारे हो
हीन व्यवस्था के मारे हो
पर तुम दाहक अंगारे हो
तनिक ज्वलित हो जाते।
गीत में आज देश के शिक्षकों की हालत, कर्म पथ से विमुखता और मनोदशा का उत्तम चित्रण हुआ है, सार्थक रचना के लिए आपको बहुत बधाई आदरणीय गोपाल नारायण जी
यदि तुम अपने पर आ जाओ
तुलसी, सूर, कबीर बनाओ
गीत भक्ति रस के कुछ गाओ
किंगरी मधुर बजाते I
अगर गुरु की कृपा हो जाये तो कुछ भी असम्भव नही है।
लेकिन किस तरह से नये रंग ढंग में ढल कर कैसे मूल को त्याग जाते है
बहुत ही सुन्दर रचना,
आदरणीय... बधाई सादर .....
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