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२१२२/ २१२२/२१२२/२१२ 
.
जाने कितने ग़म उठाता हूँ ख़ुशी के नाम पर,
ज़हर मै पीता रहा हूँ तिश्नगी के नाम पर.
.

ऐ सिकंदर!! जंग तूने जो लड़ी, कुछ भी नहीं,
जंग तो मै लड़ रहा हूँ ज़िन्दगी के नाम पर.
.

अधखिली कलियों की बू ख़ुद लूटता है बागबाँ,
शर्म सी आने लगी है आदमी के नाम पर.
.

शुक्रिया उस शख्स का जिसने बना डाली शराब,
दिल की बाते लब से निकली बेख़ुदी के नाम पर.
.

आँखे अपनी भेज कर कुछ बादलो की शक्ल में,
इक समंदर रो पड़ा सूखी नदी के नाम पर.
.

ज़ह्नो दिल पर चढ़ रहा है इक कसैला ज़ायका,
गो निंबोली चख रहे हों दोस्ती के नाम पर. 
.
निलेश "नूर"

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 7, 2014 at 9:00pm

शुक्रिया आ. राम शिरोमणि पाठक जी ...दिल से 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 7, 2014 at 8:59pm

शुक्रिया आ. डॉ. गोपाल नारायण जी .... आपने इतनी दाद दी है कि शुक्रिया हमने के लिए मेरे शब्द भी बौने पड़ गए हैं ..
बहुत बहुत धन्यवाद 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 7, 2014 at 8:58pm

धन्यवाद आ. शिज्जू भाई ..ग़ज़ल आपको पसंद आई ये जानकर हौसला मिला ..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 7, 2014 at 8:57pm

बहुत बहुत धन्यवाद आ. वंदना जी 

Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 7, 2014 at 8:46pm

हर बंद कमाल का। साधुवाद 'नूर' साहब 

Comment by Sulabh Agnihotri on September 7, 2014 at 6:11pm

आँखे अपनी भेज कर कुछ बादलो की शक्ल में, 
इक समंदर रो पड़ा सूखी नदी के नाम पर.

बहुत सुंदर बात है, नीलेश जी बधाई !

Comment by gumnaam pithoragarhi on September 7, 2014 at 5:45pm

.वाह क्या बात है ,,,,,,,,,,,,,
खूबसूरत गजल के लिए आपको हार्दिक बधाई, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2014 at 5:22pm

आदरणीय नीलेश भाई , बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है , पूरी ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 5:10pm

ऐ सिकंदर!! जंग तूने जो लड़ी, कुछ भी नहीं,
जंग तो मै लड़ रहा हूँ ज़िन्दगी के नाम पर.............वाह क्या बात है 

शुक्रिया उस शख्स का जिसने बना डाली शराब, 
दिल की बाते लब से निकली बेख़ुदी के नाम पर....क्या खोज है बेहतरीन 

आँखे अपनी भेज कर कुछ बादलो की शक्ल में, 
इक समंदर रो पड़ा सूखी नदी के नाम पर.,,,,बेहद पसंद आया ...आदरणीय नूर जी ..कमाल की इस ग़ज़ल पर मेरी तरफ से ढेरों बधाई आपको सादर 

Comment by annapurna bajpai on September 7, 2014 at 4:52pm


अधखिली कलियों की बू ख़ुद लूटता है बागबाँ, 
शर्म सी आने लगी है आदमी के नाम पर.......................वाह बहुत सुंदर अहसास , खूबसूरत गजल के लिए आपको हार्दिक बधाई, सादर 

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