चारसू आइने लगाना भी
और ख़ुद से नज़र चुराना भी
बैठकर साये में मेरे रहरौ
चाहता है मुझे गिराना भी
मेरी मौजूदगी भी नादीदा
सुर्ख़ियों में तेरा न आना भी
शौक आवारगी का किसको है
हो कहीं अपना आशियाना भी
बस्तियों को उजाड़ने वालों
सीख लो बस्तियाँ बसाना भी
हो गया एक जंग के जैसा
आजकल रोटियाँ जुटाना भी
आज ‘खुरशीद’ बालता है दिल
साथ देगा कभी ज़माना भी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आप तो उस्तादों के भी उस्ताद हैं ढेरों बधाइयाँ
सभी शेर सलीके से कहे गये एवंप्रभावशाली हैं।
आदरणीय गोपाल नारायण सा. ,जितेंदर जी ,हरिवल्लभ शरमा जी आप सभी कई ह्रदय की गहराइयों से आभार
हो गया एक जंग के जैसा
आजकल रोटियाँ जुटाना भी.......बहुत हद तक सही कहा, हार्दिक बधाई आपको आदरणीय खुर्शीद साहब
बेहतरीन
खुर्शीद भाई आप तो उस्ताद हैं .
जनाब Khusheed khairadi साहब सुन्दर ग़ज़ल आपकी...बधाई..
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