यादें
आज अचानक यूं ही
खिड़की के पास उग आई
मेरी यादों की बगिया
मनोरमता से भरी हुई।
मैंने देखा ..................
कुछ पुष्प पौधों ने जन्म लिया
अभी-अभी और जवान हो गए.
इठलाते हुए
उड़ रही थी भीनी-भीनी खुशबू
यादों की,
बगिया के हर कोने से
हर क्यारी में तने हुए थे
मधुर यादों के इन्द्र-धनुष
जो खिचते थे बरवश अपनी तरफ
हर एक पल ..............................
किसी ने मेरे हाथ को धीरे से छुआ
मेरे हृदय में सहसा कुछ हुआ
देखा तो मेरे यौवन का सूरज-मुखी
खड़ा था निहारता मुझे..........
हमेशा की तरह
मुस्कराता हुआ बाँहें फैलाये
मुझे अपना सूरज समझकर।
मेरे दिलका डिब्बा खुला
बिखर गए बीज और ज्यादा
मेरे भोली मासूम यादों के
इस बार मैं भी अंकुरित हो रही थी
उन के साथ ................. ।
काश !रह पाती हर पल लीन अपनी
यादों साथ ............................. ॥
अप्रकाशित व मौलिक
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
आ०डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर बहुत आभार ।सादर
आ० Chhaya Shukla महोदया बहुत आभार ।सादर
आ० JAWAHAR LAL SINGH सर बहुत आभार ।सादर
आ० Dr. Vijai Shanker सर बहुत आभार ।सादर
मेरे भोली मासूम यादों के
इस बार मैं भी अंकुरित हो रही थी
उन के साथ ................. ।
काश !रह पाती हर पल लीन अपनी
यादों साथ ........................ सुन्दर चित्रण!
बड़े गहरे भाव बिखेरे हैं आपने अपनी अतुकांत रचना में बहन सीमा जी एक अद्भुत रस का आनंद मिला बधाई बहन !
आदरणीया कल्पना जी
बहत आत्म-मंथन से यह कविता निकली है i इसीलिये बहुत ही सुन्दर और रमणीय हैं i आपको बधाई i
इस बार मैं भी अंकुरित हो रही थी
उन के साथ ................. ।
काश !रह पाती हर पल लीन अपनी
यादों साथ .............................
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