(मौलिक व अप्रकाशित)
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प्रतीकात्मक बिम्बों के माध्यम से आपने समाज के एक घ्रणात्मक चेहरे का अनावरण किया है ,बहुत प्रभावशाली लघु कथा बनी है ,हार्दिक बधाई आपको आ० गणेश जी
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया छाया शुक्ला जी।
आदरणीय संतलाल करुण जी, लघुकथा पर आपकी मुक्तकंठ से सराहना उत्साहवर्धन करती है जिसके लिए मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ, किन्तु मैं यह नहीं मानता कि ओ बी ओ पर अधिकतर लघुकथाएँ लघुकथा विधा पर खारिज हैं, हाँ कुछ जरूर हो सकती हैं किन्तु अधिकतर नहीं।
पुनः आपकी सहृदयता हेतु आभार।
उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।
सराहना हेतु आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।
और क्या करता बेचारा भोलुआ ? राजा मंत्री पुलिस शासन प्रशासन नेता सभी दुर्जन का साथ देते हैं, सज्जन न्याय के लिए भटकते रहता है । या मर मर के जिये, या स्वयं बदला ले या किसी ऐसे गुट में शामिल होकर बदला ले जिससे पुलिस स्वयं डरती हो। भोलू ने तीसरा विकल्प चुना। इस देशमें पुलिस के व्यवहार और अन्याय के कारण ही ज़्यादातर अपराधी और नक्सलवादी बने है। पहले डाकू बनते थे।
आदरणीय गणेश भाईजी , भारत जैसे भ्रष्ट देश में आपकी यह कथा हमेशा प्रासंगिक रहेगी।
हार्दिक बधाई । कथा का शीर्षक और भी मज़ेदार हो सकता था ... कथा के अनुरूप .... समरथ को नहीं दोष गोंसाई या ऐसा ही कुछ ।
आदरणीय ..... दुर्जन भैस ने राजा........ यहाँ ने की ज़रूरत नहीं ..... हटा दीजिए ।
सादर
नक्सल वाद की समस्या को सलीके से रेखांकित करती सुंदर लघु कथा बधाई आपको आदरनीय सादर नमन !
आदरणीय बागी जी,ओबीओ पर अधिकतर लघुकथाएँ रचना न होकर समाचार-पत्र के एक-दो सूचनापरक अनुच्छेद-जैसी लगती हैं | पढ़ने के बाद कुछ ख़ास हाथ नहीं लगता | इसलिए लघु कथाओं को पढ़ने के लिए मन लहरता नहीं | किन्तु 'बंद गली' ने हमें अपनी रचनात्मकता के साथ आकृष्ट किया है | यह कथा हौले से की गई सपाट बयानी से पूरी तरह मुक्त, रुचिपूर्वक पठनीय तथा सन्देशपरक है | मानवीय पशुता को पशुओं के कथानक के माध्यम से आप ने रूपक और प्रतीकात्मकता के साथ लघुकथा को अत्यंत प्रभावी ढंग से कहा है | ...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ |
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