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ग़ज़ल..टल लिया जाए.

२१२२   १२१२   २२ 

 

क्यों न चुपचाप चल लिया जाए.

बात बिगड़े न टल लिया जाए.

--

जर्द हालात हैं ज़माने के.

रास्ता ये बदल लिया जाये.

--

दायरे तंग हो गए दिल के.

घुट रहा दम निकल लिया जाए.

--

थक गए पाँव चलकर मगर सोचा.

साथ हैं तो टहल लिया जाए.

--

बर्फ सी जीस्त ये जमी क्यों थी.

खिल गयी धूप गल लिया जाए.

--

वारिशें इश्किया शरारों की.

भींगते ही फिसल लिया जाए.

--

चार दिन ही रही मुअइयन तो.

दो घड़ी को बहल लिया जाए.      **हरिवल्लभ शर्मा दि.22.09.2104

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by harivallabh sharma on September 24, 2014 at 1:48am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब आपकी उत्साहित करती हुयी टीप हेतु हार्दिक आभार.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 23, 2014 at 6:27pm

आदरणीय हरिवल्लभ जी

बेहतरीन i सुन्दर i

Comment by harivallabh sharma on September 23, 2014 at 4:13pm

आदरणीय khursheed Khairadi जी आपका हार्दिक आभार ...हौसला अफजाई का दिली शुक्रिया.

Comment by khursheed khairadi on September 23, 2014 at 10:09am

बर्फ सी जीस्त ये जमी क्यों थी.

खिल गयी धूप गल लिया जाए.

आदरणीय हरिवल्लभ शरमा जी ,दिल से दाद कबूल फरमाएं |उम्दा ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई |सादर 

Comment by harivallabh sharma on September 22, 2014 at 8:15pm

आदरणीय Dr. Viajy Shanker जी आपकी प्रोत्साहित करती हुयी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार..सादर.

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 22, 2014 at 5:21pm
क्यों न चुपचाप चल लिया जाए.
बात बिगड़े न टल लिया जाए.
अच्छी ग़ज़ल बनी , बधाई , आदरणीय हरी वल्लभ शर्मा जी .
Comment by harivallabh sharma on September 22, 2014 at 5:18pm

आदरणीय narendrasinh chauhan साहब आपका प्रोत्साहन जरुर हौसला बढ़ता है...आपका बहुत आभार 

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