2122 2122 2122 २१२
आज ये महफ़िल सजाकर आप क्यूँ गुम हो गये
हमको महफ़िल में बुलाकर आप क्यूँ गुम हो गये
पोखरों को पार करना भी न सीखा है अभी
सामने सागर दिखाकर आप क्यूँ गुम हो गये
लहरों से डरकर खड़े थे हम किनारों पर यहाँ
हौसला दिल में जगाकर आप क्यूँ गुम हो गये
तीरगी के साथ में तूफ़ान भी कितने यहाँ
इक दफा दीपक जलाकर आप क्यूँ गुम हो गये
आपकी ये खामुशी चुभती है नश्तर सी हमें
हमको यूं अपना बनाकर आप क्यूँ गुम हो गये
इक ज़माने बाद ओंठो पे मेरे मुस्कान थी
मीत यूं हमको रुलाकर आप क्यूँ गुम हो गये
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
'लहरों से डरकर खड़े थे हम किनारों पर यहाँ
हौसला दिल में जगाकर आप क्यूँ गुम हो गये'
बहुत खूब ,आशुतोश भाई उम्दा ग़ज़ल के लिये बधाई!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय...
तीरगी के साथ में तूफ़ान भी कितने यहाँ
इक दफा दीपक जलाकर आप क्यूँ गुम हो गये...सभी शेर उम्दा...बधाई आपको.
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