221 2121 1221 212
हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये
ये माहो शम्स गुल मेरी पहचान बन गये
जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये
बदकिस्मती से आज निगहबान बन गये
आँखों में धूल झोंक के लोगों की देख लो
मतलब परस्त मुल्क के सुल्तान बन गये
चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की
वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये
जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक
कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये
सूरत बदल गई कि निगाहें मेरी “शकूर”
आईने देख कर मुझे अंजान बन गये
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश दीदी रचना की सराहना से हौसला बढ़ा है आपका तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज सर आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय गोपाल नारायण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने रचना को मान दिया।
आदरणीय शिज्जू जी ..क्या कमाल की ग़ज़ल हुई है हर शेर उम्दा है
चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की...ये शेर बहुत भाया .पर अपने जानकारी के लिए पूँछ रहा हूँ इस लाइन में मेह्र की बजह से मात्रा की गड़ना में असुबिधा हो रही है कृपा कर इस पर थोडा प्रकाश डालें ..एक बार पुनः आपको ढेर सारी बधाई के साथ सादर
बहुत सुन्दर,,
चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की
वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये
लाजबाब ग़ज़ल ..सभी शेर अति सुन्दर...बधाई आपको जनाब शिज्जू शकूर साहब.
आँखों में धूल झोंक के लोगों की देख लो
मतलब परस्त मुल्क के सुल्तान बन गये.......बहुत खूब! विशेष बधाई इस शे 'र पर स्वीकारें आदरणीय शिज्जु जी
चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की
वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये
जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक
कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये
ये दोनों शेर तो कमाल के हुए ,मक्ता भी शानदार ,बहुत बहुत दाद कबूलिये शिज्जू भैया
जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक
कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये
सूरत बदल गई कि निगाहें मेरी “शकूर”
आईने देख कर मुझे अंजान बन गये
आदरणीय शिज्जू भाई , पूरी ग़ज़ल लाजवाब कही है , दिली मुबारक बाद | इन दो आशा आर के लिए बहुत बधाई |
आदरणीय शकूर जी
बेहतरीन गजल i मक्ता लाजवाब i आपको बधाई i सादर i
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