कौन दे उल्लास मन को ? फिर वसन स्वर्णिम, किरन को ?
हो गये जो स्वप्न ओझल फिर दरस उनके नयन को ?
कोपलों पर पहरुये अंगार धधके धर रहे हैं
साधना कापालिकी उन्माद के स्वर कर रहे हैं
त्राहि मांगें अश्रु किससे, वेदना किसको दिखायें
कौन दे स्पर्श शीतल अग्निवाही इस पवन को ?
कोटि दुःशासन निरंतर देह मथते, मान हरते
द्रौपदी का आर्त क्रंदन अनसुना श्रीकृष्ण करते
नेह के पीयूष से अभिषेक कर फिर कौन दे अब
भाल को सौभाग्य कुमकुम, आलता चंचल चरन को ?
दिग्भ्रमित दिग्पाल सारे, भाल-नत नग-श्रंखलायें
नेत्र किसकी बाट जोहें, कण्ठ अब किसको बुलायें
वक्ष में घुमड़े घनों से, श्रान्त मन है, क्लान्त तन है
कौन आकर दे सकेगा कान्ति फिर धूसर गगन को ?
झुरमुटों को पुष्प मुकुलित, झुटपुटों को चन्द्रिका नव
आँधियों को मृदु समीरण, भीत खग को मुक्त कलरव
सृष्टि में मधु मोद भर के, हर्ष का अतिरेक भर के
कौन दे उत्साह, ऊर्जा, साधना-संचित सृजन को ?
------------------ मौलिक तथा अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुलभ जी इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई ।
अनुपम प्रस्तुति के लिए सादर बधाई ..
बहुत ही उत्कृष्ट रचना आदरणीय सुलभ जी,कितने सारे प्रश्न हैं कि जिनके जबाब आज मिलते नहीं है...
झुरमुटों को पुष्प मुकुलित, झुटपुटों को चन्द्रिका नव
आँधियों को मृदु समीरण, भीत खग को मुक्त कलरव
सृष्टि में मधु मोद भर के, हर्ष का अतिरेक भर के
कौन दे उत्साह, ऊर्जा, साधना-संचित सृजन को ?............सुन्दर सृजन हेतु बधाई आपको.
बहुत ही उत्कृष्ट रचना है सुलभ जी, सुन्दर शब्दों के साथ भावसंपन्न इस कविता के लिए एक गीत है - तन भी सुन्दर मन भी सुन्दर, तुम सुन्दरता की मूरत हो"
आदरणीय सुलभ जी अति सुन्दर रचना है |हार्दिक अभिनन्दन
कोटि दुःशासन निरंतर देह मथते, मान हरते
द्रौपदी का आर्त क्रंदन अनसुना श्रीकृष्ण करते
नेह के पीयूष से अभिषेक कर फिर कौन दे अब
भाल को सौभाग्य कुमकुम, आलता चंचल चरन को ?
इस अंतरे पर कोटि नमन आपकी कलम को
सादर
सुन्दर शब्दों का प्रयोग सुन्दर भाव ...बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
कोटि दुःशासन निरंतर देह मथते, मान हरते
द्रौपदी का आर्त क्रंदन अनसुना श्रीकृष्ण करते
नेह के पीयूष से अभिषेक कर फिर कौन दे अब
भाल को सौभाग्य कुमकुम, आलता चंचल चरन को ?----बहुत सही लिखा ---वक़्त बदला संवेदनाएं बदली लुटती अबलायें आज गली गली यही सब तो हो रहा है कोई कृष्ण बचाने नहीं आता ..
हार्दिक बधाई आपको इस सार्थक प्रस्तुति पर आ० सुलभ जी
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