मंथर गति से
थमा नहि पल कोई सुहाना
बीत सदा जाता है।
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता है।
सींचा एक एक पौधा तब
वन उपवन लहराते।
अनजाने से सन्नाटे ये
चुपके चुपके आते।
बड़ा तिलस्मी मरूथल
पग पग
जीत सदा जाता है
अल सुबहा के स्वपन सजीले
दिन भर धूम मचाते।
ऊषा के स्वर्णिम चंचल रँग
साँझ ढले थक जाते।
श्याम निशा के रँग
से जीवन
भीत सदा जाता है
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता है।
.
सीमा हरि शर्मा 30.09.2014
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
सींचा एक एक पौधा तब
वन उपवन लहराते।
अनजाने से सन्नाटे ये
चुपके चुपके आते।
बड़ा तिलस्मी मरूथल
पग पग
जीत सदा जाता है -------- बहुत सुन्दर , आदरणीया सीमा हरि जी , हार्दिक बधाई |
पूरा गीत बहुत सुन्दर है सीमा जी। मुझे निम्नलिखित पंक्तियां विशेष प्रभावी लगीं।
बधाई !
अल सुबहा के स्वपन सजीले
दिन भर धूम मचाते।
ऊषा के स्वर्णिम चंचल रँग
साँझ ढले थक जाते।
श्याम निशा के रँग
से जीवन
भीत सदा जाता है
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता है।
"मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता है।" बहुत बधाई सीमा जी ,
वाह!! जीवन के सत्य का अद्भुत चित्रण,परन्तु दुर्भाग्य मनुष्य इसे पर ध्यान कहाँ दे पाता है,वह तो जीवन की आपाधापी में ही उलझा रह जाता है.
पूर्ण रचना में बड़े सुंदर भाव उभर कर आये है , आदरणीया सीमा जी. सच! सब कुछ धीमे-धीमे पलों में बीत जाता है जीवन की खुशिया भी और गम भी. बहुत-२ बधाई आपको
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