For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा (ग़ज़ल 'राज')

२१२२   २१२२   २१२२ 

ढूँढती इक मौज तूफां में किनारा

क्यूँ समझता ही नहीं सागर ईशारा

 

तिश्नगी उसको कहाँ तक ले गई है

अक्स अपना झील में उसने उतारा

 

फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को

छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा

 

फट गया जो पैरहन तो ग़म नहीं है

चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा

 

डोलती किश्ती बढ़ाती हाथ अपना

उस तरफ़ तुम मोड़ लो अपना शिकारा

 

खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को

लोग देखेंगे अजब दिलकश नजारा

 

देख लो इक बार उसको मुस्कुराकर

डूबते की आस तिनके का सहारा

 

अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में

 कम से कम अब नाम तो आया हमारा 

 

लौट आयें फिर वही पुर-कैफ़ मंजर

वक़्त जिनके दरमियाँ हमने गुज़ारा

---------------------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित ) 

पुर-कैफ़ मंजर---सुखद आनंद भरा   नाम 

Views: 752

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 6, 2014 at 6:12pm

केवल प्रसाद जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई ,तहे दिल से आभार आपका  

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 5, 2014 at 9:23pm

आ0 राजेश कुमारी जी, बहुत खूबसूरत गजल के लिए बधाई स्वीकारे।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2014 at 10:07am

प्रिय वंदना,ग़ज़ल पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से मेरा लेखन सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ सस्नेह | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2014 at 10:05am

आ० गणेश बागी जी,ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर उत्साहित हूँ आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ ,तहे दिल से आभारी हूँ  

Comment by vandana on October 5, 2014 at 6:20am

 

देख लो इक बार उसको मुस्कुराकर

डूबते की आस तिनके का सहारा

 

अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में

 कम से कम अब नाम तो आया हमारा 

वाह आदरणीया राजेश दीदी बहुत बढ़िया ग़ज़ल 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 4, 2014 at 8:53pm

वाह वाह, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सभी शेर पुरकस लगें, बधाई स्वीकारें आदरणीया राजेश जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2014 at 7:52pm

प्रिय छाया शुक्ला जी ,ग़ज़ल के शेर आपके दिल में जगह बना पाए मेरा लिखना सार्थक हुआ बहुत- बहुत दिली शुक्रिया. 

Comment by Chhaya Shukla on October 4, 2014 at 7:27pm

 बेहतरीन गज़ल के लिए दाद कबूल फरमाएं बहन राजेश जी सादर ! 

प्रिय शेर -

फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को

छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा

खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को

लोग देखेंगे अजब दिलकश नजारा

अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में

 कम से कम अब नाम तो आया हमारा 

बधाई ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2014 at 5:39pm

आ० डॉ.विजय शंकर जी इस उत्साहवर्धन की शुक्रगुजार हूँ ,मेरा लिखना सार्थक हुआ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2014 at 5:39pm

नरेंद्र सिंह जी ,बहुत- बहुत शुक्रिया. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service