२१२२ २१२२ २१२२
ढूँढती इक मौज तूफां में किनारा
क्यूँ समझता ही नहीं सागर ईशारा
तिश्नगी उसको कहाँ तक ले गई है
अक्स अपना झील में उसने उतारा
फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को
छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा
फट गया जो पैरहन तो ग़म नहीं है
चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा
डोलती किश्ती बढ़ाती हाथ अपना
उस तरफ़ तुम मोड़ लो अपना शिकारा
खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को
लोग देखेंगे अजब दिलकश नजारा
देख लो इक बार उसको मुस्कुराकर
डूबते की आस तिनके का सहारा
अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में
कम से कम अब नाम तो आया हमारा
लौट आयें फिर वही पुर-कैफ़ मंजर
वक़्त जिनके दरमियाँ हमने गुज़ारा
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
पुर-कैफ़ मंजर---सुखद आनंद भरा नाम
Comment
केवल प्रसाद जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई ,तहे दिल से आभार आपका
आ0 राजेश कुमारी जी, बहुत खूबसूरत गजल के लिए बधाई स्वीकारे।
प्रिय वंदना,ग़ज़ल पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से मेरा लेखन सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ सस्नेह |
आ० गणेश बागी जी,ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर उत्साहित हूँ आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ ,तहे दिल से आभारी हूँ
देख लो इक बार उसको मुस्कुराकर
डूबते की आस तिनके का सहारा
अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में
कम से कम अब नाम तो आया हमारा
वाह आदरणीया राजेश दीदी बहुत बढ़िया ग़ज़ल
वाह वाह, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सभी शेर पुरकस लगें, बधाई स्वीकारें आदरणीया राजेश जी।
प्रिय छाया शुक्ला जी ,ग़ज़ल के शेर आपके दिल में जगह बना पाए मेरा लिखना सार्थक हुआ बहुत- बहुत दिली शुक्रिया.
बेहतरीन गज़ल के लिए दाद कबूल फरमाएं बहन राजेश जी सादर !
प्रिय शेर -
फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को
छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा
खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को
लोग देखेंगे अजब दिलकश नजारा
अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में
कम से कम अब नाम तो आया हमारा
बधाई !
आ० डॉ.विजय शंकर जी इस उत्साहवर्धन की शुक्रगुजार हूँ ,मेरा लिखना सार्थक हुआ
नरेंद्र सिंह जी ,बहुत- बहुत शुक्रिया.
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