आँक दूँ ललाट पर
मैं चुम्बनों के दीप, आ..
रात भर विभोर तू
दियालिया उजास दे..
संयमी बना रहा
ये मौन भी विचित्र है
शब्द-शब्द पी
करे निनाद-ब्रह्म का वरण..
कोंपलों में बद्ध क्यों
सुगंध देह से उमग ?
आ, सहज उघार दूँ
मैं विन्दु-विन्दु
आवरण..
रात्रि की उठान, किन्तु
स्वप्न शांत-थिर रहें..
भंगिमा से
रोम-रोम
तोष का विभास दे !
रात भर विभोर तू
दियालिया उजास दे.. .
श्रम सधे,
समर्थ हो..
प्रयास की लहर-लहर..
अर्थ स्वेद-धार का
गहन मगर विकर्म-सा !
ज्योति-शृंखला बले
शिरा-शिरा
सिहर-सिहर..
कम्पनों से व्यक्त हो
प्रगाढ़ प्रेम
नर्म-सा !
लालिमा प्रभात की
वियोग की कथा रचे
किन्तु, ’मावसी निशा
सुहाग का
समास दे !
रात भर विभोर तू
दियालिया उजास दे.. .
*********************
--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
लालिमा प्रभात की
वियोग की कथा रचे
किन्तु, ’मावसी निशा
सुहाग का
समास दे !
यूँ तो पूरी कविता ही सुन्दर है, पर ये पंक्तियाँ अद्वितीय हैं , बधाई, आदरणीय सौरभ पांडे जी।
वाह सौरभ जी, कमाल! कल-कल करते हुए बहते जल सा प्रवाहपूर्ण नवगीत।
बधाई
-जगदीश पंकज
आँक दूँ ललाट पर
मैं चुम्बनों के दीप, आ..
रात भर विभोर तू
दियालिया उजास दे..
अद्भुत अभिव्यंजना ! जितनी तारीफ की जाए कम है।
संयमी बना रहा
ये मौन भी विचित्र है
शब्द-शब्द पी
करे निनाद-ब्रह्म का वरण..
कोंपलों में बद्ध क्यों
सुगंध देह से उमग ?
आ, सहज उघार दूँ
मैं विन्दु-विन्दु
आवरण..
रात्रि की उठान, किन्तु
स्वप्न शांत-थिर रहें..
भंगिमा से
रोम-रोम
तोष का विभास दे !
रात भर विभोर तू
दियालिया उजास दे.. .
मुखड़े ने अनुभूतियों की जिस गहनता को चमत्कारी रूप से उकेरा था उसे और भी तीव्रता प्रदान करता बंद ....
वाहहहहहहहहहहहह !
श्रम सधे,
समर्थ हो..
प्रयास की लहर-लहर..
अर्थ स्वेद-धार का
गहन मगर विकर्म-सा !
ज्योति-शृंखला बले
शिरा-शिरा
सिहर-सिहर..
कम्पनों से व्यक्त हो
प्रगाढ़ प्रेम
नर्म-सा !
लालिमा प्रभात की
वियोग की कथा रचे
किन्तु, ’मावसी निशा
सुहाग का
समास दे !
ज्योति श्रंखला बले - शिरा-शिरा, सिहर-सिहर .... बंधुवर शब्द नहीं मिल रहे हैं, ‘बले’ का क्या मौके पर प्रयोग हुआ है !
आदरणीय पूरा गीत इतना प्रवाहमय है कि बस ....
शब्दों के साथ ऐसी अंतरंग मित्रता ... शब्दकोष तैयार खड़ा है, कोई भी शब्द बुलाना या पकड़ कर लाना नहीं पड़ता .. अपनी जगह पहचान कर उचित शब्द खुद ही भागा चला आता है .. ऐसी मित्रता कम ही देखने को मिलती है !
बहुत-बहुत बधाई !!!!
मान्यवर इस गीत को मैं अपने पेज ‘हस्ताक्षर’ पर काॅपी कर अपने पास सुरक्षित कर रहा हूँ।
क्या बात है ज़िन्दाबाद। बहुत ही प्रवाहमयी सार्थक रचना है मोहतरम।
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