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तुम्हारी याद में बरसात का मौसम हुईं आंखें..

लगे हैं जोडने में फिर भी अक्सर टूट जाते हैं,
यहां रिश्ते निभाने में पसीने छूट जाते हैं,
भले रंगीन हैं इनमें हवाएं कैद हों लेकिन
ये गुब्बारे जरा सी देर में ही फूट जाते हैं।।

आपका हाथ थामकर मैं चल ही जाऊंगा,
अगर मना करोगे तो मचल ही जाऊंगा,
मैंने माना कि रेस कातिलों से होनी है,
मुझे यकीन है बचकर निकल ही जाऊंगा।।

आजकल ये मन मेरा जाने कहां खोने लगा
जब कभी भी गम लिखा तो ये हृदय रोने लगा,
हाथ में थामी कलम तो खुद—ब—खुद चलने लगी
आप लोगों की दुआओं का असर होने लगा।।

कभी शोला हुईं आंखें, कभी शबनम हुईं आंखें
नजर उलझी दुपट्टे में वहीं रेशम हुईं आंखें,
तुम्हारा नाम सुन अब भी हमारा दिल धडकता है
तुम्हारी याद में बरसात का मौसम हुईं आंखें।।

.

 - मौलिक व अप्रकाशित @ अतुल

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Comment by rajesh kumari on October 7, 2014 at 8:19pm

लगे हैं जोडने में फिर भी अक्सर टूट जाते हैं,
यहां रिश्ते निभाने में पसीने छूट जाते हैं,
भले रंगीन हैं इनमें हवाएं कैद हों लेकिन
ये गुब्बारे जरा सी देर में ही फूट जाते हैं।।------बहुत सुन्दर वाह्ह 

सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई आपको .

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