"वाह वाह !! क्या लिखते हैं साहब, एक बार किताब छपने तो दीजिये, देखिये कैसे लोग हाथो हाथ उठा लेते हैं I"
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
लघुकथा पसंद करने हेतु दिल से आभार प्रेषित है आदरणीय जितेंद्र जी।
आदरणीय शिज्जु भाई, उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु आभार।
आदरणीया वेदिका जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धक है, बहुत बहुत आभार।
लघुकथा पसंद करने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी।
हार्दिक अभिनन्दन बागी जी,
पन्नों की बातें पंक्तियों में समेट दीं। आपकी सराहना में दो पंक्तियाँ विशेष आपके लिए लिखीं हैं, कि
"यूँ तो हम सभी में, उस रब की ही छवि है,
जो दर्द बाँट ले, वही तो कवि है ।"
आदरणीय बागी जी
ऐसे गुब्बारे रोज ही फुस्स होते रहते है i पर जब तक फुस्स नहीं होते वैसे ही फूले रहते हैं i सुख फूले रहने में है तो छपाओ क्यूँ i काश हम् कुछ तो अपना आत्म मूल्यांकन करें i फुस्स की नौबत न आने दे i बेहतरीन लघु कथा i सम -सामयिक भी और सन्देश भी देती हुयी i सादर i
आदरणीय बागी सर ....इस सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई ..सादर
बहुत ही बेहतरीन लघुकथा. आइना दिखाती हुई चंद पंक्तियाँ, बहुत -बहुत बधाई आदरणीय बागी जी
आदरणीय बागी जी लघुकथा के माध्यम से आपने एक दबी हुई सच्चाई बयान की है बहुत बहुत बधाई आपको
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