तेरी सूरत बहुत खूबसूरत सही
तेरी सूरत सी कोई भी सूरत नहीं
तेरी सूरत से जो रूबरू हो गया
उसके बचने की कोई सूरत नहीं I
तेरी सूरत के जलवे फिजाओं में है
तेरी सूरत की चर्चा हवाओं में है
तेरी सूरत में है जैसी मस्ती भरी
वैसी कोई अजंता की मूरत नहीं I
तेरी सूरत में गंगा की पाकीजगी
तेरी सूरत में आशिक की आवारगी
तेरी सूरत ही सूरत ख्यालों में है
तुझसे मिलने का कोई महूरत नहीं I
तेरी सूरत सी है एक सूरत तेरी
तेरी सूरत में कुदरत की कारीगरी
तेरी सूरत के सजदे में जो आ गया
उनकी आपस में कोई कुदूरत नहीं I
तेरी सूरत से ‘गोपाल’ रोशन जहाँ
तेरी सूरत तो होती नहीं है बयाँ
तेरी सूरत की मय है मयस्सर जिसे
उसको फिर और मय की जरूरत नहीं
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
श्याम नारायन जी
आपका बहुत-बहुत आभार i
" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. " |
सादर ................
आदरणीय बागी जी
आपका आशीर्वाद मिलना मेरे लिये सौभाग्य भी है और संतोष भी i सादर i
जीतू भैय्या
आपका प्रेम सदैव मिलता है i यह मेरा अहोभाग्य है i
सविता जी
यह सूरत अनिवर्चनीय ईश्वर की है i सादर i
विजय सर !
आपका प्रोत्साहन सदा मिलता है i यह मेरा सौभाग्य है i
सूरत सूरत रटते रटते, हो गयी रे बावरिया :-)
वाह वाह, शूरत से शुरुआत और सूरत पर खत्म, बढ़िया है जी, बधाई आदरणीय।
वाह! क्या बात है. बहुत ही सुंदर. बहुत-बहुत बधाई आपको आदरणीय डा.गोपाल जी
सूरत की सीरत में ऐसे उलझे की अपनी ही सुरत हम भूल बैठे ... कई बार पढ़े और सुरत में ही उलझे रहें ...बहुत बहुत बढ़िया लिखा है आदरणीय चाचाजी ...सादर नमस्ते
वाह !क्या बात है तेरी सूरत की ,
जो देखे वो बच न पाये तेरी सूरत से
उलझ के रह जाए तेरी सूरत में ,
बच न पाये किसी भी सूरत से।
बहुत सुन्दर रचना। बधाई आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , सादर।
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