For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख्वाब   हरगिज   न  पूरे  हमारे  हुये  I

हम तो बाजी मुहब्बत की हारे हुये II

 

दोस्त    हमको   भुलावा   ही    देते रहे

वक्त जब आ  पड़ा तो  किनारे हुये I

 

माफ़ जबसे    हमारी   खता   हर   हुई

हमने समझा कि गर्दिश में तार  हुये I

 

उनका नजरे चुराने  का  ढब देखिये

कैसे-कैसे   गजब   के   इशारे   हुये I

  

इश्क नजरो में जब से नुमायाँ हुआ

कितने दिलकश जहाँ के नज़ारे हुये I

 

हुस्न अपनी   खनक    में  ही मदहोश है

और हम अपनी किस्मत के मारे हुये I

 

चैन मस्जिद में भी मिल न पाया मुझे

हम  जले    इस   कदर   के    शरारे हुये I

(मौलिक और अप्रकाशित)

 

Views: 722

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 23, 2014 at 10:52am

विजय सर !

आपका धन्यवाद i आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 23, 2014 at 10:52am

आदरणीय नीलेश जी

गजल का शऊर  मुझे बिलकुल नहीं i मैंने स्वय डरते-डरते ये गजल पोस्ट की i शुक्र है इतनी बुरी नहीं गुजरी i दोष के बारे मे विस्तार से बतायें ताकि  दूर कर सकूं i  

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 22, 2014 at 4:22pm

  दीपावली की शुभ कामनाएं।  ग़ज़ल के लिए बधाई आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी।  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2014 at 1:30pm

बहुत खूब आदरणीय डॉ. साहब 
शानदार अशआर हुए हैं ,,आपको बधाई ..
मक्ते में मुझे के साथ हम आने से ऐबे शातुर्गुरबा है .. इसका संज्ञान लें 
आदर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। आ. भाई तिलकराज जी की बात से सहमत…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। सजल का प्रयास अच्छा हुआ है। कुछ अच्छे शेर हुए हैं पर कुछ अभी समय चाहते…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई गजेन्द्र जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई तिलकराज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, प्रशंसा, मार्गदर्शन और स्नेह के लिए हार्दिक…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, गजल का सुंदर प्रयास हुआ है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी सादर अभिवादन। एक जटिल बह्र में खूबसूरत गजल कही है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अच्छे शेर हुए। मतले के शेर पर एक बार और ध्यान देने की आवश्यकता है।"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेन्द्र जी नमस्कार  बहुत शुक्रिया आपका  ग़ज़ल को निखारने का पुनः प्रयास करती…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार  बहुत शुक्रिया आपका, बेहतरी का प्रयास ज़रूर करूँगी  सादर "
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"ग़़ज़ल लिखूँगा कहानी मगर धीरे धीरेसमझ में ये आया हुनर धीरे धीरे—कहानी नहीं मैं हकीकत…"
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"नहीं ऐसी बातें कही जाती इकदम     अहद से तू अपने मुकर धीरे-धीरे  जैसा कि प्रथम…"
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"मुझसे टाईप करने में ग़लती हो गयी थी, दो बार तुझे आ गया था। तुझे ले न जाये उधर तेज़ धाराजिधर उठ रहे…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service