घर-घर रोशनी
एक नागरिक के रूप में हम सब सरकार से अधिकाधिक सुविधा चाहते हैं परंतु जब कर्तव्य-पालन की बात आती है हममें से अधिक्तर दुसरे की तरफ देखते हैं | जव फला व्यक्ति की ड्यूटी है अगर वो नहीं करता तो हम क्यों सिर-दर्द लें ?भले ही हम ना माने पर यही रवैया हमारे जीवन को प्रभावित करता है |हममे से जो भी लोग टैक्स देते हैं वे सभी सरकार और अन्य एजेंसीयों से आशा रखते हैं की हमे बेहतरीन सुविधा सरकार उपलब्ध कराए |हम सभी चाहते हैं की हमारी गलियाँ-सड़के-मेन-रोड रात्रि को प्रकाशमय रहें |और सरकार इस दिशा में भरपूर प्रयास भी करती है परंतु हमारी लापरवाही के कारण ये प्रकाश-स्तम्भ दिन में भी जले रह जाते हैं जिसके कारण बिजली जैसी महत्वपूर्ण सम्पति का नुक्सान होता है | बिजली जिसका उत्पादन,वितरण और संचयन तीनो ही आर्थिक दृष्टी से बहुत खर्चीले हैं कि इस प्रकार बर्बादी एक प्रकार का रास्ट्रीय-द्रोह है | बिजली के बिना हम ना तो शहरों ना ही उद्योगों की कल्पना कर सकते हैं |किसी रोज़ 3-4 घंटे बिजली की आपूर्ति बंद हो जाए तो नागरिकों का सड़को पर उतरना ,तोड़-फोड़,हुडदंग ,सरकार और व्यवस्था को कोसना प्रारंभ कर देता हैं |परंतु क्या कभी हमने इस अव्यवस्था के लिए कभी खुद को दोषी माना है ?
प्राय ये देखने में आता है की मुख्य-मार्गों ,गलियों ,सरकारी-भवनों में दिन के समय भी मरकरी लैंप जले रहते हैं और ना तो सेवा-प्रदाता ना सेवा-प्राप्तकर्ता इस बात पे ध्यान देते कि इस बर्बादी को रोका जाए |रात होते ही हमें हर जगह उजाला चाहिए पर दिन में हम ये सोच कर कि ये मेरा काम नहीं है और इससे मुझे क्या फ़र्क पड़ता है हम गलियों में लगे स्विच को ओफ़ करना भी जरूरी नहीं समझते | नतीजतन हमारे टैक्स का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद और कई घरों में रोशनी पहुँचाने की कोशिश नाकाम |
हमारे देश में 70% बिजली निर्माण में प्राक्रतिक गैस एवं कोयला उपयोग में लाया जाता है जोकि सीमित मात्रा में उपलब्ध है तथा उनके जलाने पर राख एवं वायु-प्रदुषण की समस्या बढ़ती है |इस तरह बिजली की बर्बादी हमारे भविष्य को अंधरे की तरफ धकेल रही है |समझ नहीं आता कि सरकार जनता को तो एल.इ.डी लैंप जैसे लैंप लगाने को कहती है जबकि अभी भी बड़े सरकारी भवनों एवं सार्वजनिक-प्रकाश व्यवस्था में 1000 वाट के मरकरी लम्पों का प्रयोग देखने को मिलता है |जबकि इतनी रोशनी पाने के लिए 100 वाट का लैंप पर्याप्त है |एक सीधा सा फार्मूला है कि 8 वाट एल.इ.डी =15 वाट सी.एफ.एल=75 वाट बल्ब बराबर रोशनी देते हैं अगर अच्छी कम्पनी के हों |निसंदेह एल.इ.डी अभी महंगे है पर अगर सरकार इस तकनीक को प्रोत्साहित करे तो देश को लंबे समय में अधिकाधिक लोगों तक सस्ती बिजली-आपूर्ति संभव है |पर सरकार को सबसे पहले इस तकनीकी को स्वयं अपनाना पड़ेगा ताकि लोग प्रेरित हो ,बिजली निगमों के माध्यम से कम कीमत में इन बल्बों को उपलब्ध करवाना होगा ताकि लोग इनका प्रयोग कर संतुष्ट हों ,इससे कम ऊष्मा-उत्सर्जन होगा तथा देश का कार्बन-क्रेडिट बढ़ेगा और कोयले तथा प्राक्रतिक गैस पर भी दबाब कम होगा |
यूँ तो मैं सार्वजनिक-प्रकाश व्यवस्था में सोलर-लम्पों और स्वचालित तकनीक का पक्षधर हूँ पर समझता हूँ की ये तकनीक काफ़ी महंगी है तथा हर जगह कारगर नहीं है पर तब तक सरकार एक व्यवस्था कर सकती है कि सभी सार्वजनिक-प्रकाश व्यवस्था एवं सरकारी भवनों के लिए प्री-पैड मीटर व्यवस्था लाए और वहाँ कि जरूरतों के हिसाब से बिजली का एक मासिक कोटा तय करे जो सर्दी-गर्मी और त्योहारों में थोड़ा-बहुत घट-बढ़ सकता है |और उसके बाद अगर यहाँ के लोग अपनी लापरवाही के कारण अंधरे में रहते हैं तो जुर्मना लगाकर उन्हें बिजली मुहैया करवाई जाए |ये जुर्मना व्यक्ति-विशेष /संस्था-विशेष दोनों पर लापरवाही बरतने और राष्ट्रीय-सम्पदा को बर्बाद करने के लिए लगना चाहिए | सरकार अगर ना भी जागे पर अब हमे जागने की जरूरत है |हमे जरूरत है की बिना दुसरे का मुँह ताके हम दिन में जल रही स्ट्रीट लाइटों को बुझाने की आदत डालें और अन्य लोगों को प्रेरित करें |किसी निकाय में जो लोग सावर्जनिक-लाइटों के लिए जिम्मेवार हैं उनके नंबर उपलब्ध करवाएं जाएँ और अगर बार-बार उनकी कोताही से बिजली की बर्बादी हो तो ये रकम उसके वेतन से वसूली जाए |
हम लोगों को ये समझना होगा कि बिजली एक अमूल्य रास्ट्रीय –सम्पति है जिसका सही उपयोग हमारे देश को बहुत आगे ले जा सकता है |अगर हम बिजली की बर्बादी रोकेंगे तो स्वच्छ और प्रकाशमय वातावरण बनाने में मदद करेंगे |बिजली उत्पादन में कम खर्च होगा और ये राशि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मदों पर खर्च हो सकता है और देश का मानवीय-संसाधन भी विकसित होगा |
एक नागरिक/एक अध्यापक के रूप में मैं बिजली की इस क्षति को रोकने की पूरी कोशिश करता हूँ और अपने दोस्तों और मित्रों और छात्रों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता हूँ |पर मेरा ये प्रयास बूंद जैसा है |अपने सभी साथियों और मित्रों से अपील करता हूँ की इस उद्देश्य को सफल बनाने में अपनी भागीदारी निश्चित करें |एक नारा है अगर आप सभी इसे फैला पाएं तो बहुत आभारी रहूँगा
दिन में जले ना बेवजह सरकारी बल्ब
हर घर में रोशनी हर नागरिक का संकल्प |
.
सोमेश कुमार
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
जागरूकता बहुत जरुरी है ..साथ ही समय समय पर अपने समाजिक कर्तव्यों के बोध को खंगालने की भी आवश्यकता होती है .भले ही सब उसे जानते हैं पर कई बार अनजाने में भी भूलने की गलती कर जाते हैं ..आपका आलेख इसलिए जाना होते हुए भी महत्वपूर्ण है ..हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय
विचारों को समर्थन देने के लिए शुक्रिया पर चाहूँगा कि इस मिशन में हम सभी साथ आएं ताकि देश में हर घर में रोशनी हो सके और हमारा अपना घर और अगली पीढ़ी भी रोशनी में रह पाए |कृपया अपने स्तर पे इस मिशन को सहयोग दें तथा बिजली जैसी अमूल्य सम्पदा के बचाव के लिए लोगों को प्रेरित करें |
आपके विचार स्वागत योग्य हैं i सादर i
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online