क्षणिकाएँ
1.
थम गई
गर्जन मेघों की
दामिनी भी
शरमा गयी
सावन की पहली बूँद
उनकी ज़ुल्फ़ों से टकरा गयी
............................................
2.
साया जवानी का
अंजाम देख
घबरा गया
वर्तमान की
टूटी लाठी से
भूतकाल टकरा गया
..............................................
3.
किसकी जुदाई का दंश
पाषाण को रुला गया
लहरों पे झील की
आसमाँ का चाँद
बस तन्हा
रह गया
..............................................
4.
वेगवती समीर
वातायन के पट खामोश
नयन देहरी द्वारे
गठरी बन बैठी
परदेशी पी की याद
............................................
5.
हर रंग में
खुदा संग होता है
रंग देख के इंसान के
खुदा भी दंग होता है
छोडो मज़हब के झगड़े
मज़हब में तो बस
मुहब्बत का रंग होता है
.
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत सुंदर और सार्थक क्षणिकाएं रची है | हार्दिक बधाई श्री सुशिल सरना जी -
वेगवती समीर
वातायन के पट खामोश
नयन देहरी द्वारे
गठरी बन बैठी
परदेशी पी की याद -----वाह !
gagar me sager bhrne ki bhut khusurt kosish ki hai aap ne
क्या बात है सरना जी ? इस कविता में आप फिर से अपने रंग में हैं i मजा आया i सुन्दर छणिकायें i
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