For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे दिल से ये भी न पूछिए, कि जला कहाँ ये बुझा कहाँ,
जो शरर था आग़ था ख़ाक है लगी इसको ऐसी हवा कहाँ.
.

कई संग उठे हैं मेरी तरफ़, कई उँगलियाँ मेरी ओर हैं,  
जो सज़ा मिली है गुनाह की वो गुनाह मैंने किया कहाँ.
.

मेरे लडखडाने की देर है, मुझे मयपरस्त कहेंगे सब,
उन्हें क्या पता मुझे इश्क़ है, कभी जाम मैंने छुआ कहाँ.     
.  

जो ख़ुदा कहे यहीं जम रहूँ, जो इशारा हो अभी चल पडूँ,
ये जो वक़्त है ये घड़ी का है, ये कभी किसी का हुआ कहाँ.   
.

ये सदाएँ हैं मेरी आहों की मेरी ग़ज़लें तेरी अदाएँ हैं,
मेरे आंसुओं की लक़ीरें हैं कोई शेर मुझ से बना कहाँ.  
.

ज़रा पलकों का ये वरक़ हटा, कभी आँखों में भी तो झाँक ले, 
ये क़सीदे हैं तेरी शान में, अभी तू ने इनको पढ़ा कहाँ. 
.

कभी शुहरतो की शराब थी, कभी हुस्न हुस्न तिलिस्म थे,  
मेरी मंज़िलो पे नज़र रही कोई जादू मुझ पे चला कहाँ
.

वो भी सरफिरा मैं भी सरफिरा, वो भी नूर है मैं भी ‘नूर’ हूँ, 
वो भी आईना मैं भी आईना, वो भी खुल के मुझ से मिला कहाँ.  
.
निलेश "नूर"
 

Views: 732

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 1, 2014 at 11:14am

शुक्रिया गुमनाम जी, नरेन्द्र सिंह जी, सारथि जी, डॉ. गोपाल नारायण जी, उमेश जी,  सौरभ सर, डॉ. आशुतोष मिश्र जी, आ. गिरिराज जी.
बस इसी दाद के लिए हर कवि और  शायर रचता है ...यही उसकी सांसों का ईंधन है ..
कोटिश: धन्यवाद  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 1, 2014 at 11:11am

शुक्रिया आ. श्याम नारायण जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 5:50am

आदरनीय नीलेश भाई , हर शे र बेमिसाल है , पूरी गज़ल के लिये दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 31, 2014 at 4:56pm

आदरणीय नूर जी कल इस रचना को पढ़ा था आज मेरा मन बरबस फिर यहाँ आ गया ..कई बार गुनगुनाया ..वाकई कमाल की ग़ज़ल 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 30, 2014 at 11:37pm

हर शेर पर अलग-अलग दाद ...

मगर ये तो इनमें भी विशेष - 

ये सदाएँ हैं मेरी आहों की मेरी ग़ज़लें तेरी अदाएँ हैं,
मेरे आंसुओं की लक़ीरें हैं कोई शेर मुझ से बना कहाँ.  

मक्ता भी वाह वाह !  .. दिल से बधाई, आदरणीय

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 30, 2014 at 3:15pm

अगर इक्जामनर होता

तो नंबर दस में दस देता

नजाकत के अलग देता

लियाकत के अलग देता ----------संग्रहणीय गजल है i

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 30, 2014 at 10:56am

सभी साथियो का दिल से शुक्रिया ..

Comment by umesh katara on October 30, 2014 at 9:32am

शानदार जनाब वाहहहहहह

Comment by Saarthi Baidyanath on October 29, 2014 at 10:47pm

क्या शानदार ग़ज़ल हुई है जनाब , माशा-अल्लाह ! दिली दाद कुबूल फरमायें ... :)

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 29, 2014 at 9:07pm

आदरणीय नूर जी .आपकी एक और बेहतरीन ग़ज़ल ..रूमानियत से भरी इस ग़ज़ल के हर शेर पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service