मेरे दिल से ये भी न पूछिए, कि जला कहाँ ये बुझा कहाँ,
जो शरर था आग़ था ख़ाक है लगी इसको ऐसी हवा कहाँ.
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कई संग उठे हैं मेरी तरफ़, कई उँगलियाँ मेरी ओर हैं,
जो सज़ा मिली है गुनाह की वो गुनाह मैंने किया कहाँ.
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मेरे लडखडाने की देर है, मुझे मयपरस्त कहेंगे सब,
उन्हें क्या पता मुझे इश्क़ है, कभी जाम मैंने छुआ कहाँ.
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जो ख़ुदा कहे यहीं जम रहूँ, जो इशारा हो अभी चल पडूँ,
ये जो वक़्त है ये घड़ी का है, ये कभी किसी का हुआ कहाँ.
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ये सदाएँ हैं मेरी आहों की मेरी ग़ज़लें तेरी अदाएँ हैं,
मेरे आंसुओं की लक़ीरें हैं कोई शेर मुझ से बना कहाँ.
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ज़रा पलकों का ये वरक़ हटा, कभी आँखों में भी तो झाँक ले,
ये क़सीदे हैं तेरी शान में, अभी तू ने इनको पढ़ा कहाँ.
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कभी शुहरतो की शराब थी, कभी हुस्न हुस्न तिलिस्म थे,
मेरी मंज़िलो पे नज़र रही कोई जादू मुझ पे चला कहाँ
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वो भी सरफिरा मैं भी सरफिरा, वो भी नूर है मैं भी ‘नूर’ हूँ,
वो भी आईना मैं भी आईना, वो भी खुल के मुझ से मिला कहाँ.
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निलेश "नूर"
Comment
waah gazal achchhi lagi ,,,,,,,,, badhai..........
" सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई " |
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